Book Title: Asrava Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय... ब्र. विनोद जैन एवं ब्र. अनिल जैन द्वारा अनुवादित कृति “भाव त्रिभङ्गी" का प्रकाशन पूर्व में हमारे ट्रस्ट के द्वारा किया गया था। जिससे साधु वर्ग एवं जनसामान्य (श्रावक)वर्गलाभान्वित हुये। इस वर्ष आपदोनों के द्वारा “आम्रव त्रिभङ्गी" का अनुवाद-सम्पादन किया गया। मुझे जब ज्ञात हुआ तो इस ग्रंथ के प्रकाशन का विचार भी ट्रस्ट के माध्यम से कराने का भाव हुआ फलत: इस कृति का प्रकाशन ट्रस्ट ने भगवान महावीर के2528 वेंनिर्वाण महोत्सव केशुभावसर पर किया। आदरणीय ब्रह्मचारीद्वय निरन्तर ज्ञानाभ्यास में रत रहते हैं आप दोनों ने अभी तक प्रकृति परिचय का संकलन-सम्पादन सच्चे सुख का मार्गका सम्पादन तथा सिद्धान्तसार, ध्यानोपदेश कोश, भाव-त्रिभङ्गी, परमागमसार, लघुनयचक्र, ध्यानसार, श्रुतस्कंध आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों को प्रथम बार अनुवाद किया पुण्योदय से ये समस्त कृतियाँ प्रकाश में आ चुकी हैं, ये आप दोनों के परिश्रम का ही फल है। आप लोगों का यह कार्य सचमुच सराहनीय/प्रशंसनीय है। इसी के साथ ही आप दोनों के द्वारा जैनेन्द्रलघुवृत्ति, ध्यानप्रदीप का अनुवाद तथा धवलापारिभाषिक कोश, सत्संख्या सूत्र की व्याख्या, जीवकाण्ड प्रश्नोत्तरी, जैनसिद्धान्त प्रवेशिका एवं चरणानुयोग प्रवेशिका का संकलन किया गया है। आशा है ये कृतियाँ भी शीघ्र ही प्रकाश में आयेंगी। आप दोनोंइसी तरह श्रुताराधना मेंलगेरहें ऐसी मेरी मनोकामना है। इस ग्रंथ का प्रकाशन मुख्यत: पूज्य पिताजी श्री कस्तूरचंद गंगवाल एवं माताजी गुलाब बाई गंगवाल की स्मृति में उनकी पुत्र वधु श्रीमती उर्मिला देवी गंगवाल कर रही हैं। आशा है कि पूर्व की कृति की तरह इस कृति को भी साधुवर्ग एवं विद्वत्वर्ग में ससम्मान उपयोग किया जायेगा ऐसी मनोकामना है...। -सनतकुमारगंगवाल Jain Education International For Private{I}ersonal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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