Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 10
________________ न भाग्य से रुष्ट है जो यह कहता ही नहीं कि कुछ गलत हो रहा है, उसी को सुख मिलता है। जिसने कहा गलत हो रहा है, वह तो चूका। मैं एक मुसलमान फकीर का जीवन पढ रहा था। एक आदमी मेहमान हुआ। सुबह दोनों नमाज पढ़ने बैठे। वह आदमी नया-नया था, परदेशी था उस गांव में। वह गलत दिशा में मुंह करके बैठ गया। काबा की तरफ मुंह होना चाहिए, मक्का की तरफ मुंह होना चाहिए, वह गलत दिशा में मुंह करके बैठ गया। और जब उस आदमी ने आंखें खोलीं तो फकीर को दूसरी दिशा में मुंह किये नमाज पढ़ देखा तो वह बहुत घबड़ाया कि बड़ी भूल हो गई। वह फकीर से पहले नमाज करने बैठ गया था तो देख नहीं पाया कि ठीक दिशा कहां है। जब फकीर नमाज से उठा तो उसने कहा महानुभाव, आप तो मेरे बाद ध्यान करने बैठे, आपने तो देख लिया होगा कि मैं गलत दिशा में ध्यान कर रहा हूं। मुझे कहा क्यों नहीं? मुझसे यह गलती क्यों हो जाने दी? वह फकीर हंसने लगा उसने कहा, हमने गलती देखना ही छोड़ दी। अब जो होता है ठीक होता है। हम अपनी गलती नहीं देखते तो तेरी गलती हम क्या देखें ! गलती देखना छोड़ दी। जब से गलती देखना छोड़ी तबसे हम बड़े सुखी हैं। जो न तो किस्मत से नाराज है न भाग्य से रुष्ट है जो जीवन में देखता ही नहीं कोई भूल। जो है वैसा ही होना चाहिए। जैसा हुआ वैसा ही होना चाहिए था। जैसा होगा वैसा ही होगा। ऐसा जिसने जान लिया, ऐसा परम स्वीकार जिसके भीतर पैदा हुआ - फिर सुख ही सुख है। फिर रस बहता । फिर तो मगन ही मगन। फिर तो मस्ती ही मस्ती है। फिर तो सब उपद्रव गये । फिर काटे कहां बचे? फिर तो फूल ही फूल हैं, कमल ही कमल हैं। जिसकी जरूरतें थोड़ी और ईमान बड़ा है हमारी जरूरतें बड़ी और ईमान छोटा है। हम ईमान को बेचकर जरूरतें पूरी कर रहे हैं। ईमान को बेचते हैं, वस्तुएं खरीद लाते हैं। हम सोचते हैं, हम बड़े समझदार हैं। क्षमा करो, मगर दो-चार बातें प्राचीनों को भी मालूम थीं। उन्हें मालूम था कि चाहे जरूरतें कितनी ही कट जायें, कोई चिंता नहीं, ईमान मत बेच देना। ईमान बेचना यानी आत्मा को बेचना है। ईमान बेचना यानी जीवन की मूल भित्ति को बेच देना है। तब तुम कूड़ा-करकट खरीद लोगे, एक दिन पाओगे हाथ तो भरे हैं, प्राण सूने हैं। जाते वक्त हाथ चाहे खाली हों, प्राण भरे हों बस, तो तुम जीवन से जीतकर लौटे, विजेता की तरह लौटे अन्यथा खाली हाथ लौटे। जिसकी जरूरतें थोडी और ईमान बड़ा है संक्षेप में जो अपने आप से संतुष्ट है ऐसे कुछ गहरे सूत्र उन्हें मालूम थे। इन सूत्रों को मुक्त करना है। जीवन से चिपकना और मृत्यु से घृणा करना

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