Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Bhanvarlal Nahta View full book textPage 6
________________ स्वर्गीय गणिवर्य बुद्धिमुनि जी पट्टी करना आदि का काम सहर्ष किया। इससे पूर्ण मुनिजी को बहुत शांता पहुंची और स्वस्थ हों गये । आगमों का अध्ययन करने के लिए आपने संपूर्ण आगमों का योगोद्वहन किया इसके बाद सं० १९६५ में सिद्धक्षेत्र पालीताना में आचार्य श्रीजिनरत्नसूरिजी ने आपको गणिपद से विभूषित किया । मारवाड़, गुजरात, कच्छ, सौराष्ट्र और पूर्व प्रदेश तक में आप निरंतर विचरते रहे कच्छ और मारवाड़ में तो आपने कई मंदिर - मूर्तियों एवं पादुकाओं की प्रतिष्ठा भी करवाई यथा जिनरत्वसूरिजी की आज्ञा से भुज में दादा जिनदत्त सूरिजी की मूर्ति एवं अन्य पादुकाओं की प्रतिष्ठा बड़ी धूमधाम से करवाई वहाँ से मारवाड़ के चूड़ा ग्राम में आकर जिन प्रतिमा, नूतन दादावाड़ी ओर जिनदत्तसूरजोको मूर्तिप्रतिष्ठा करवाई चूडाचातुर्मासिके समय ही आपको जिनरत्नसू जो के स्वर्गवास का समाचार मिला आचार्यश्री की अंतिम आज्ञानुसार आपने जिन ऋद्धिसूरिजी के शिष्य गुलाबमुनिजी की सेवा के लिए बंबई बिहार किया और उनको अंतिम समय तक अपने साथ रख कर उनकी खूब सेवा की, उनके साथ गिरनार, पालीताना आदि तीर्थों की यात्रा को इसी बीच उपाध्याय लब्धि मुनिजी का दर्शन एवं सेवा करने के लिये आप कच्छ पधारे और वहाँ मंजलग्राम में नये मंदिर और दादावाड़ी की प्रतिष्ठा उपाध्यायजी के सान्निध्य में करवाई, इसी तरह अंजार ( कच्छ ) के शांतिनाथ जिनालय के ध्वजादंड एवं गुरुमूत्ति आदि को प्रतिष्ठा करवाई । वहाँ से विचरते हुये पालीताना पधारे असातावेदनीय के उदय से आप अस्वस्थ रहने लगे फिर भी ज्ञान और संयम की आराधना में निरंतर लगे रहते थे । कदम्बगिरि के संघ में सम्मिलित होकर सौभागचन्द जी मेहता को आपने संघपति की माला पहनाई और तदनन्तर उपाध्यायजी की आज्ञानुसार अस्वस्थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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