Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 10
________________ प्रकार के वस्त्र प्रदान करते हैं। इन भोगभूमि में युगलिया पुत्र - पुत्री जन्म लेते हैं। उसी क्षण माता - पिता की मृत्यु हो जाती है और वे युगलिया ही पति - पत्नी का रूप ले लेते चौदह कुलकर - वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है इसे 'हण्डावसर्पिणी' भी कहा है क्योंकि इसमें कुछ अघटित घटनाएँ होती रहती हैं जैसे प्रथम तीर्थंकर का तृतीय काल में हो जाना इत्यादि। इसमें तृतीय काल के अन्त में जब पल्य का आठवाँ भाग शेष रह गया था तब क्रमश: चौदह कुलकर उत्पन्न हुए हैं। उनके नाम हैं - प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित् और नाभिराज। जैन हरिवंशपुराण में आया है कि इनमें से बारहवें कुलकर मरूदेव ने अकेले पुत्र को जन्म देकर 'प्रसेनजित्' यह नाम रखा था, तभी से इस भूमि में युगलिया की परम्परा समाप्त हो गई थी। इनका विवाह प्रधान अर्थात् उत्तम कुल की कन्या के साथ सम्पन्न हुआ था। इन्होंने भी अकेले एक पुत्र को जन्म देकर उसका 'नाभिराज' यह नामकरण किया था। महापुराण में लिखा है कि - इन्द्र ने राजा 'नाभिराज' का विवाह शुद्ध कुल की कन्या 'मरूदेवी' के साथ कराया था। उस समय इस आर्यखण्ड की भूमि में एक गृहांग कल्पवृक्ष - पृथ्वी निर्मित इक्यासी खण्ड का रत्नमयी प्रासाद - राजमहल रूप से स्थित हो गया था जिसका नाम 'सर्वतोभद्र' था। ऐसा हरिवंशपुराण में कहा है - महाराजा नाभिराज के पुण्य प्रभाव से ही सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से देवों ने वहाँ एक 'अयोध्या' नगरी की रचना कर दी। देवों ने शुभ - मुहूर्त में राजमहल में पुण्याहवाचन करके उस महल में नाभिराज और मरूदेवी को प्रवेश कराया था। छठे काल के अन्त में जब प्रलयकाल आता है तब उस प्रलय में यहाँ आर्यखण्ड में एक हजार योजन नीचे तक की भूमि नष्ट हो जाती है। उस काल में अयोध्या नगरी स्थान के सूचक नीचे चौबीस कमल देवों द्वारा बना दिये जाते हैं। उन्हीं चिन्हों के आधार से देवगण पुन: उसी स्थान पर अयोध्या की रचना कर देते है अत: यह अयोध्या नगरी शाश्वत अर्थात् अनादिनिधन मानी गई है। वैदिक ग्रन्थों में भी अयोध्या की विशेष महिमा बताई है। 'अथर्ववेद' में इसे आठ चक्र और नवद्वारों से शोभित कहा है। 'रुद्रयामल' ग्रन्थ में इस अयोध्या को विष्णु भगवान का मस्तक कहा है एवं बाल्मीकि रामायण में मनु द्वारा निर्मित बारह योजन लम्बी माना है। भगवान ऋषभदेव का गर्भ कल्याणक - छह माह बाद भगवान ऋषभदेव 'सर्वार्थसिद्धि' नामक विमान से 'अहमिन्द्र' अवस्था से च्युत होकर यहाँ माता मरूदेवी के गर्भ में आने वाले हैं, सौधर्म इन्द्र ने ऐसा जानकर कुबेर को आज्ञा दी - 'हे धनपते! तुम अयोध्या में जाकर माता मरूदेवी के आंगन में रत्नों की वर्षा प्रारम्भ कर दो।' उसी दिन से कुबेर ने प्रतिदिन साढे तीन करोड प्रमाण उत्तम - उत्तम पंचवर्णी रत्न बरसाना शुरु कर दिया। एक दिन महारानी मरूदेवी ने पिछली रात्रि में ऐरावत हाथी, श्वेत बैल आदि उत्तम - उत्तम अर्हत् वचन, जनवरी 2000

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