Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 36
________________ आदेश हो गया। मुनि (साधु) का प्रथम अक्षर म्। यहां पर मंत्र शास्त्र के अनुसार म् अनुस्वार होने पर 'ओं' यह एकाक्षर मंत्र सिद्ध होता है। इसी ओं को ओंकार कहते हैं। शास्त्र प्रवचन के आदि में मंगलाचरण इस तरह प्रसिद्ध है - ओंकारं बिन्दुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः।। कामदं मोक्षदं चैव, ओंकाराय नमो नमः ।। 1 ।। विज्ञान के आलोक में महामंत्र का महत्व - भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित आत्मिक विज्ञान बहुत सूक्ष्म एवं व्यापक है। उसकी तुलना आधुनिक भौतिक विज्ञान नहीं कर सकता। भौतिक विज्ञान जिस सीमा पर समाप्त होता है उस सीमा से आत्मिक विज्ञान प्रारंभ होता है। तथापि अनेक दृष्टियों से आध्यात्मिक विज्ञान और भौतिक विज्ञान, अधिकांश तत्वों में साम्य रखता है। नीचे कुछ वैज्ञानिकों के उधरण किये जाते हैं जिनसे महामंत्र का महत्व प्रतीत होता है - __ आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के ट्रांसलेटर यंत्रों का आविष्कार किया है जिससे वक्ता के एक भाषा का अनेक भाषाओं में एक साथ अनुवाद होता जाता है। लोकसभा के अधिवेशन में इसका प्रयोग होता है। इसी प्रकार भगवान महावीर की विशाल सभा (समोशरण) में उनकी ओंकार ध्वनि (दिव्य देशना) का एक साथ अनेक भाषाओं में अनुवाद होता जाता है अर्थात् सभी भाषा - भाषी मानव अपनी - अपनी भाषा में समझते जाते हैं। एक अतिशय यह भी है कि संज्ञी पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी भी उस देशना को अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं, अन्यथा उनको आनन्दानुभव नहीं होता। जिनकी ध्वनि है ओंकार रूप, निरक्षरमयमहिमा अनूप'4 वैज्ञानिक दृष्टि से णमोकार मंत्र का मन पर प्रभाव पड़ता है, एवं आत्मशक्ति का विकास होता है उससे पवित्रता आती है, इसी कारण यह मंत्र सर्वकार्यों में सिद्धिदायक माना गया है। इस विषय का उद्धरण भी मिलता है जैसे - "मानव मस्तिष्क में ज्ञानवाही और क्रियावाही ये दो प्रकार की नाड़ियां होती हैं। ज्ञानवाही नाड़ियां और मस्तिष्क के ज्ञान केन्द्र, मानव के ज्ञान विकास में एवं क्रियावाही नाड़ियां और मस्तिष्क के क्रिया केन्द्र, चारित्र के विकास की वृद्धि के लिये कार्य करते हैं। क्रिया केन्द्र और ज्ञानकेन्द्र का घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण णमोकार मंत्र की आराधना, स्मरण और चिंतन से, ज्ञान केन्द्र और क्रिया केन्द्रों का समन्वय होने से मानवमन सुदृढ़ होता है और आत्मिक विकास की प्रेरणा मिलती है। 15 वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध किया है कि शब्दों की तरंगे (ध्वनियां) मानवों एवं पशुओं के मन में टकराती हैं अतएव उनका मानस पटल प्रभावित होता है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी जैनाचार्यों ने आधुनिक विज्ञान से हजारों वर्ष पूर्व यह सिद्ध कर दिया है कि महामंत्र की बीज एवं शक्ति के संयोग से उत्पन्न तरंगें (ध्वनियां) पशुओं एवं मानवों के मानस पटल में टकराती हैं, अतएव इनसे मानवों एवं पशुओं का भी हित होता है। आधुनिक वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकृत करते हैं कि बिना आत्मबल या श्रद्धा के किसी लौकिक कार्य में भी सफलता प्राप्त करना संभव नहीं है। इस विषय में अमेरिकन डाक्टर होआर्ड रस्क ने अभिमत व्यक्त किया है - "रोगी तब तक स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता. जब तक वह अपने आराध्य में विश्वास नहीं करता है। आस्तिकता ही समस्त रोगों को दूर करने वाली है। जब रोगी को चारों ओर से निराशा घेर लेती है, उस समय आराध्य के प्रति की गई प्रार्थना 3A अर्हत् वचन, जनवरी 2000

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