Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 49
________________ अर्हत् कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 12, अंक 1 जनवरी 2000, 47-51 अन्य ग्रहों पर जीवन ■ हेमन्त कुमार जैन * जीवन के लिए ऊर्जा का होना अत्यावश्यक है। और सूर्य ऊर्जा का प्रमुख प्राकृतिक स्रोत है। अतः जीवन का अस्तित्व सौरमंडलों में ही संभव है, हमारे सौरमंडल में सूर्य से विशिष्ठ दूरियाँ बनाये रखने के कारण विभिन्न ग्रहों के तापमान, वायुमंडल एवं पर्यावरण की भिन्नताएँ हैं, मानव एवं अन्य जीवों के लिए जो आवश्यकताएँ हैं, वे हमारी पृथ्वी पर सुलभ हैं। अन्य ग्रहों में ऐसे ही वातावरण होने पर जीवन संभव हो सकता है। हमारे सौरमंडल के अतिरिक्त दूसरे सौर मंडलों की खोज में वैज्ञानिक कई वर्षों से संलग्न रहे हैं, कुछ ही दिनों पूर्व हमारे सौरमंडल के समीप ही एक अन्य सौरमंडल का पता चला है, यह सौरमंडल हमारी गैलेक्सी "मंदाकिनी" में दूधिया रंग की एक आक गंगा में है, उसमें कोई दौ सौ अरब तारे हैं, अमेरिका की सेन्फ्रान्सिसकों स्टेट युनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने दिनांक 15 अप्रैल 99 को अपनी इस खोज के संबंध में घोषणा की। खगोल विशेषज्ञों को लगा कि पृथ्वी से 44 प्रकाश वर्ष दूरी पर एक ग्रह, "एपसिलन एंडोमेट्री” नामक तारामंडल के चारों ओर घूम रहा है, इसके पश्चात् सेंनजोंस के निकट वेधशाला में 107 तारों का 11 वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दो अतिरिक्त ग्रहों को खोज निकाला गया जो अपने आप में सौर मंडल जैसे ही हैं। इनमें कई ग्रह और उपग्रह विद्यमान हैं। वेदों में लिखा है, एतेषु ही सर्वं वसु हित मेते ह्रीदऽसर्वं वासयन्ते तद्यदिदऽसर्वं वासयन्ते तस्माद्वसब इति ॥ " शत कां. 141 अ. 6 । ब्रा. 91 के 5 || सत्यार्थ प्रकाश: पृष्ठ 188 अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चन्द्र, नक्षत्र और सूर्य इनका वसु नाम इसलिए है कि इन्हीं में सर्व पदार्थ और प्रजा बसती है और ये ही सबको बसाते हैं, जब पृथ्वी के समान सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र वस्तु हैं, तो उनमें उसी प्रकार की प्रजा होने में क्या संदेह है ? और जब परमेश्वर का यह छोटा सा लोक अर्थात् पृथ्वी, मनुष्यादि सृष्टि से भरा है, तो क्या यह सब लोक शून्य होगा ? परमेश्वर का कोई भी कार्य निष्प्रयोजन नहीं होता, तो इतने असंख्य लोकों में मनुष्यादि सृष्टि न हो, क्या ऐसा हो सकता है ? इसलिए सर्वत्र मनुष्यादि सृष्टि है। सूर्याचन्द्र मसौ: दिवंच पृथ्वीं विभिन्न लोकों में मनुष्यादि की आकृति में कुछ-कुछ भेद होना संभव है, जैसे कि चीन, अफ्रीका, अमेरिका, भारत आदि के मनुष्यों का रंग रूप और आकृति में भेद है, परन्तु जिस जाति के तथा अंगों के धारणा करने वाले मनुष्य यहाँ हैं, वैसे ही अन्य लोकों में भी हैं। धाता यथापूर्वम कल्पयत् । चान्तरिक्ष मयोः स्व ॥ ऋ. सं. 101 सू. 1901 मं. 3 | सत्यार्थ प्रकाश पृष्ठ 189 अर्थात् धाता (परमात्मा) ने जिस प्रकार के सूर्य, चन्द्र, द्यो, भूमि, अन्तरिक्ष और तत्रस्थ सुख, विशेष पदार्थ पूर्व कल्प में रचे थे, वैसे ही इस कल्प अर्थात् वर्तमान * 729, किसान मार्ग, बरकत नगर, जयपुर

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