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अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
संक्षिप्त आख्या डॉ. हीरालाल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी, 19 से 21 नवम्बर 99
- कृष्णा जैन*
परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के ससंघ सान्निध्य में डॉ. हीरालाल जैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 19 से 21 नवम्बर 99 के मध्य किया गया। डॉ. हीरालाल जैन सिद्धान्त, इतिहास, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा के मनीषी एवं चिंतक थे। जैन साहित्य जगत के लिये षट्खण्डागम के सम्पादक के रूप में उनका अवदान अविस्मरणीय है। जैन साहित्य के आद्य ग्रन्थों का स्मरण डा. हीरालाल जैन के बिना अधूरा है। आपके इन्हीं अवदानों को विनयांजलि निवेदित करने हेतु ही जन्म शताब्दी वर्ष में यह आयोजन सम्पन्न हुआ, जिसके संयोजक डा. भागचन्द जैन 'भागेन्दु' एवं स्थानीय संयोजक डा. सुशील पाटनी थे।
डा. भागचन्द जैन 'भागेन्दु' के संयोजकत्व में उद्घाटन सत्र आरम्भ हुआ जिसका संचालन डा. सुशील पाटनी द्वारा किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो. शुभचन्द्र जैन, मैसूर विश्वविद्यालय ने की। सारस्वत अतिथि के पद को डा. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर एवं विशिष्ट अतिथि के पद को पद्मश्री डा. लक्ष्मीनारायण दुबे, डा. लक्ष्मी शुक्ला, श्री शंकरसिंह (सदस्य - लोक सेवा आयोग, राजस्थान) ने सुशोभित किया। मंगलाचरण पं. ब्र. जयकुमार 'निशान्त', टीकमगढ़ द्वारा एवं ब्र. अनीती दीदी (संघस्थ) के भजन के साथ सम्पन्न हुआ। पूज्य आचार्य श्री सुमतिसागरजी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीपदीपन पूर्वक सत्र का आरम्भ हुआ। डा. कमलचन्द सोगाणी, जयपुर ने अपने प्राकृत एवं अपभ्रंश प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा कि यदि मुझे प्राकृत एवं अपभ्रंश के अध्ययन एवं प्रचार - प्रसार के लिये नरक में भेज दिया जाये तो मैं वहाँ जाने के लिये सहर्ष तैयार हूँ। आपने डा. हीरालालजी जैन के अवदानों पर प्रकाश डाला। प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन ने भी डा. हीरालाल जैन के साहित्यिक अयदान को रेखांकित करते हुए डा. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु' के अवदान का भी उल्लेख किया। डा. धर्मचन्द्र जैन ने डा. हीरालाल जैन के संस्मरणों पर प्रकाश डालते हुए डा. जैन को को मरणोपरान्त सिद्धान्त चक्रवर्ती की उपाधि से सम्मानित करने का प्रस्ताव किया।
उद्घाटन सत्र की समाप्ति के उपरान्त डा. हीरालाल जैन के साहित्य की पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन डा. कमलचन्द सोगाणी द्वारा सम्पन्न हआ। परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के साथ दोपहर 1 बजे से पुन: विद्वानों की अन्तरंग गोष्ठी हुई जिसमें उपाध्यायश्री ने आज के सामाजिक वातावरण पर अपनी वेदना व्यक्त की एवं विद्वानों से तनावयुक्त जीवन, व्यसन मुक्त राष्ट्र, शाकाहार जीवन पद्धति पर साहित्य सृजन करने की प्रेरणा दी।
दिनांक 19.11.99 को दोपहर 2 बजे द्वितीय सत्र आरम्भ पं. शिवचरनलाल, मैनपुरी के मंगलाचरण से हुआ। सत्र की अध्यक्षता भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली के शोधाधिकारी डा. गोपीलाल 'अमर' ने की। सारस्वत अतिथि के रूप में सुशोभित थे डा. कमलचन्द सोगाणी एवं मुख्य अतिथि थे शास्त्री परिषद के यशस्वी अध्यक्ष प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन। प्राचार्य लालचन्द्र 'राकेश', गंजबासोदा द्वारा डा. हीरालाल जैन पर रचित कविता प्रस्तुत की गई। डा. सोगाणी ने अपभ्रंश एवं डा. हीरालालजी की अपभ्रंशीय साधना पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि क्रांतिकारी अपने समय से आगे चलता है शायद इसीलिये इतने वर्षों पूर्व हीरालालजी ने अपभ्रंश के बारे में सोचा।
दिनांक 20.11.99 को प्रात: 8.30 बजे से तृतीय सत्र एवं सायं 3 बजे से चतुर्थ सत्र में समागत विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने आलेखों का वाचन किया गया एवं उन पर विचार विमर्श हुआ। डा. उदयचन्द जैन (सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) ने प्राकृत में रचित कविता 'प्राकृत पुरुष' का पाठ कर विद्वानों को मन्त्र मुग्ध किया। अर्हत् वचन, जनवरी 2000