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हमें थी। आज हम साक्षरता दिवस मना रहे हैं, सारे भारत को साक्षर करने के लिये निकले हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि पराधीनता का काल नहीं होता तो इस देश में गैर पढ़े-लिखे लोग नहीं होते। लेकिन उपेक्षा हुई, अनाज का उत्पादन घटा, विद्या, वाणिज्य
और शिल्प कारीगरी, वही टेक्नालॉजी है। निर्माण करना और यह हजारों साल पहले की बात है। हम जरा कल्पना करें, आज भी उनका उल्लेख होता है। इस देश में, इस देश की मिट्टी में, जीवन को कभी टुकड़ों में नहीं देखा गया, समग्रता में देखा गया, समग्रता को जीवन में देखते हुए हमने जीवन के विकास का प्रयत्न किया। इसीलिये तो हजारों साल से इस देश का अस्तित्व है। इस देश का लोहा आज भी माना जाता है। देश महान शक्ति बनने की सारी सम्भावना से परिपूर्ण है। यह हमारे मित्र और शत्रु दोनों स्वीकार करते हैं। हमें अवसर मिला है कि नैतिकता के रास्ते पर चलते हुए, धर्म का अवलम्बन करते हुए, हम प्राणी मात्र को सुखी बनाने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ने का प्रयास करें। मैं आशीर्वाद लेने के लिये आया था वह मुझे पर्याप्त मात्रा में मिल गया है। अगले कार्यक्रम तक यह आशीर्वाद मेरे काम आयेगा। हमें आशीर्वचन चाहिये, इससे हम सही रास्ते पर दृढ़ता के साथ चल सकें। कर्तव्य और अकर्तव्य के बीच कभी-कभी द्वन्द होता है, एक धर्म संकट जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। जब विमान का अपहरण किया गया तब ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी। अगर विमान में मेरे घर वाले होते, मेरे सगे संबंधी होते तो उन्हें बलि चढ़ाने में मुझे एक क्षण के लिये भी संकोच नहीं होता। मगर जो थे, वे भारत के नागरिक थे, विदेश से हवाई जहाज में चढ़े थे, विदेश में रूक गये जाकर। रक्त बहाकर भी उनकी रक्षा संभव नहीं थी। इसलिये यह फैसला लिया गया। हृदय पर पत्थर रखकर फैसला किया गया कि हम ऐसा कदम उठायेंगे, इसमें भले ही हमें आलोचना का लक्ष्य बनना पड़े। लेकिन प्राण रक्षा हो। और जो दुष्ट हैं, वे बेनकाब हों, उनके चेहरे पर पड़ी हुई कायरता की नकाब हटे। विमान का अपहरण करना कोई बहादुरी का काम नहीं है, बहादुरी का काम था कारगिल की चोटियों पर बैठे हुए आक्रमणकारियों को वहाँ से हटाना, चोटियों पर बैठे हुए और हमारे बहादुर जवान नीचे थे, मगर चोटियों पर पहुँचना था, संकल्प था, जान पर जूझने का सवाल था, मगर तैयारी थी, कर्तव्य की पुकार थी और उसका पालन किया वीर जवानों ने। देश को संकटों से गुजारकर, संकटों से बचाकर ले जाना यह जनता के सहयोग से ही संभव है। घर के भीतर, घर के बाहर हमारी बढ़ती हुई शक्ति एवं हमारी बढ़ती हुई समृद्धि को देखकर षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। देश के भीतर जाली नोट बड़ी मात्रा में भेजने की कोशिश हुई। हमारी अर्थ व्यवस्था को चौपट करने के तरीके अपनाये जा रहे हैं। लेकिन हर संकट को हमने सफलता साथ झेला है और आने वाले संकटों को भी हम चकनाचूर करेंगे, यह हमारा विश्वास है। इसके लिये हमें सबका सहयोग चाहिये। सत्पुरुषों, देवताओं का आशीर्वाद चाहिये। आपने मुझे यहाँ बुलाया है, मैं आपका आभारी हूँ। मैं स्वयं को आपके आशीर्वाद के लायक सिद्ध कर सकँ यही मेरी परमात्मा से प्रार्थना है। बहत - बहुत धन्यवाद, नमस्कार।
भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष 4 फरवरी 2000 से फरवरी 2001 तक
समारोह पूर्वक मनायें।
अर्हत् वचन, जनवरी 2000