Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 61
________________ सन्दर्भ स्थल - 1. अंगाणं किं सारो! आयारो। आचारंग नियुक्ति - गाथा 16 2. महाभारत, 13/149 3. मनुस्मृति, 1/207 4. हरिभक्ति विलास, 3/10 5. मनुस्मृति, 4 / 156, प्रकाशक - मोतीलाल बनारसीदास, 1993 6. 1. कौटिल्य 2. जैनाचार सिद्धान्त स्वरूप - देवेन्द्रमुनि शास्त्री, प्र. - श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर, 4 5 7. महाभारत - अनुशासन पर्व 1 8. मनुस्मृति, 1/110 9. (क) महाभारत - अनुशासन पर्व, 149/37 )क) वशिष्ठ धर्म सूत्र, 6/3 (ग) देवी भागवत, 11/21 (घ) वृद्धोपयोगी यागवल्क्य, 8/71 10 वीर वर्धमान चरित्र भ. सकलकीर्ति, 19/208 - 214, प्र. - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 11. अभिधान राजेन्द्र कोष, विजय राजेन्द्र सुरीश्वर ‘सावय' शब्द, प्र. - श्री जैन श्वेताम्बर संघ, रतलाम, 1913 - 14 12. जैनाचार, देवेन्द्र मुनि, पृ. 231 13. क, जैनधर्म का सरल परिचय, बलभद्र जैन, प्र. - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर, 1996, पृ. 128 ख. जैन श्रावकाचार का अध्ययन : सागर धर्मामृत के विशेष संदर्भ में, शोध प्रब्नध, डॉ. सुधा जैन, 1987 14. तत्र पक्षो हि जैनानां कृत्स्नहिंसा विवर्णनम्। मैत्री प्रमोद कारूण्यमाध्यस्थैरूपवृंहितम्। 15. मद्यमांसमधुत्यागैः सहोदुम्बर पञ्चकै । गृहिणां प्राहुराचार्या - अष्टौमूलगुणानिति॥, श्रावकाचार पूज्यपाद, 14 16. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, समन्तभद्र, 66 17. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, व्याख्याकार - पं. सदासुख, पृ. 127 - 129 18. शाकाहार विज्ञान, डॉ. नेमीचन्द जैन, प्र. - हीरा भैया प्रकाशन, इन्दौर, पृ. 56-57 19, वही, पृ. 56-57 20. सागार धर्मामृत, पं. आशाधर, 3/11 - 12 21, शाकाहार या मांसाहार, गोपीनाथ अग्रवाल, पृ. 29, 30 शाकाहार सभ्यता की नई सुबह, डॉ. नेमीचन्द जैन 22. सागार धर्मामृत, 2/11 23. स्वास्थ्य विज्ञान, डॉ. भास्कर गोविन्द घाणेकर, पृ 382 24, (क) सुश्रुत संहिता, 46/466 (ख) चरक सूत्र, 25/40 (ग) स्वास्थ्य विज्ञान, डॉ. मुकुन्द स्वरूप शर्मा, पृ. 345 (घ) न दुह्येत् सर्वभूतानि निर्द्वन्दवो निर्भयो भवेत्। न नक्तं चैवभ श्रीयाद् रात्रौ ध्यानपरोभवेत्। (कूर्म पुराण) (ड) अम्भोदपटलच्छने नाश्रान्ते रविमण्डले। अस्तंगतेतू भुञ्जनां अहो भावो सुसेवकाः। ये रात्रौ सर्वदाऽऽहारं वर्जयन्ति सुमेधसः। तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते। मृते स्वजन मात्रेञपि सूतकं जायते किल। अस्तंगते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम्। (महाभारत) 25, वीरोदय काव्य, मुनि ज्ञानसागर, 19/29 अर्हत् वचन, जनवरी 2000 59

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