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उमास्वामी ने स्पष्ट किया है -
___ 'मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं'। अर्थात - यह महामंत्र सर्व मंगल मंत्रों में प्रथम मंगलमंत्र है। 7. मंगल सूत्र -
__चत्तारि मंगलं - अरहंता मंगलं, सिद्धामंगलं, साहूमंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा - अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णतो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि - अरहते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरण पव्वज्जामि, साहसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि।
अर्थात् - अरिहन्त, सिद्ध, साधु एवं जैन धर्म ये चार देव, लोक में मंगल, उत्तम और शरणरूप हैं। इस मंगल सूत्र में संक्षिप्त रूप से साहू शब्द आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी का वाचक है, अत: यह मंगलमंत्र का मंगल सूत्र है। सूत्र संक्षिप्त अक्षरवाला होता है। 8. ग्रहारिष्ट निवारक मंत्र -
यह महामंत्र दूषित नवग्रहों को शान्त करने वाला होता है। किस मंत्र के पद से किस ग्रह की शान्ति होती है इसका विवरण इस प्रकार है - ओं ह्रीं णमो अरिहंताणं
- सूर्य, मंगल ग्रहों की शान्ति। ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं
- चन्द्र, शुक्र ग्रहों का निवारण। ओं ह्रीं णमो आइरियाणं
गुरु ग्रह दोष की शान्ति। ओं ह्रीं णमो उवज्झायाणं
- बुध ग्रह का निराकरण। ओं ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं - शनि, राहु, केतु ग्रहों की शान्ति।
अतिशय पुण्यात्मा चौबीस तीर्थंकरों के भक्तिपूर्वक अर्चन से भी नवग्रहों की शान्ति होती है। किस तीर्थंकर के अर्चन से किस दूषितग्रह की शान्ति होती है इसका क्रमश: विवरण इस प्रकार है - 1. ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन,
- गुरूग्रहशान्ति सुमतिनाथ, सुपार्श्वनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ 2. पद्मप्रभ
- सूर्यग्रहशान्ति। 3. चन्द्रप्रभ
- चन्द्रग्रह शान्ति। 4. विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ,
- बुधग्रहशान्ति कुन्थुनाथ, अरनाथ, नमिनाथ. वर्धमान 5. वासुपूज्य
मंगलग्रह शान्ति 6. पुष्पदन्त
- शुक्रग्रह शान्ति 7. मुनिसुव्रतनाथ
शनिग्रह शान्ति 8. नेमिनाथ
- राहुग्रह शान्ति 9. मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ
- केतुग्रह शान्ति भद्रबाहुचरूवाचैवं, पंचमः श्रुतकेवली।
विद्या प्रवादत: पूर्वात्, ग्रहशान्ति रूदीरिता।। 8110 अर्थात् - पंचम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु आचार्य ने कहा है कि विद्याप्रवाद पूर्व से
अर्हत् वचन, जनवरी 2000