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लिये चना वह बिलकुल नवीन मार्ग नहीं था, वह जैन साधना से ही निकला था और योग एवं तपस्या की परम्परा भी जैन साधना से ही निकली। इस प्रकार जैन साधना जहाँ एक ओर बौद्ध साधना का उद्गम है वहाँ शैव मार्ग का भी आदि स्रोत है। इस प्रकार जैन धर्म ही सृष्टि का आदि धर्म है। यह उससे भी प्राचीन है जितने कि ऋषभदेव।
ऋषभदेव ही इस युग में जैन धर्म के उद्गम स्रोत हैं, जहाँ से असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, शिल्प और आध्यात्म की धाराएँ प्रस्फुटित हुईं। निर्मल स्रोतस्विनी के रूप में ये धाराएँ देश में ही नहीं वरन् विश्व भर में विभिन्न संस्कृतियों के रूप में प्रवहमान हेकर जन - जन को सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।
सन्दर्भ स्थल1. Sindh : Five Thousand Years Ago, Ramprasad Chandra, Morden Review, Calcutta,
1932 2. सील क्र. 620/1928 - 29 3. पउमचरियं, विमलसूरि, 4/68-69 4. आदिपुराण, आ. जिनसेन, 15/36, संगीत समयसार, आ. पार्श्वदेव, 7/96 5. आदिपुराण, 1/4. पुरुदेवचम्पूबन्ध, श्रीमदर्हददास, 5 6. भारतीय संस्कृति के सूत्रधार, शिवस्वरूप ऋषभदेव, राजेन्द्रकुमार बंसल, अर्हत् वचन, अप्रैल 96, पृ. 28 7. जैन धर्म की प्राचीनता (निबंध), मुनि श्री महेन्द्र कुमार 'प्रथम', ऋषभ सौरभ, 1992, पृ. 18, प्रकाशक - ऋषभदेव
प्रतिष्ठान, दिल्ली 8. Bulletin of the Deccan College Research Institute, Part 14, Div. 3, pp. 229-236 9. तन्मय॑स्य देवत्वमजा नमग्रे, ऋग्वेद, 39/17 10. ऋग्वेद, 410 मंडल / 102 सूक्त/6 मंत्र, 3/34/2 11. ऋग्वेद, 2/38/6, 1/190/1 12. ऋग्वेद, 4/58/3 13. ऋग्वेद, 10/166/1, तथा नास्य पशून समानात् हिनस्ति - अथर्ववेद 14. यजुर्वेद अ. 31/8 15. अष्टषष्टिषु तीर्थेषु यात्रायां यत्फलं भवेत्। श्री आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद् भवेत्॥ 16. श्रीमद्भागवत् स्कन्ध, 313, श्लोक 13 17. अथर्ववेद, 15/1/1-2, 15/1/15. 15/2/3/1-2, 15/1/3/4, 4-11, द्वारा ऋषभ
सौरभ, पृ. 66 18. शांकर भाष्य, 2/2/33 19. ऋग्वेद, 10/102/6, 2/4/33/10, 2/4/1/33/4, 10/136/1-7 20 - 21. जैन संस्कृति का विश्वव्यापी प्रसार (निबंध), डॉ. गोकुलप्रसाद जैन, ऋषभ - सौरभ, 1992, पृ.
27-28 22. (1) नाग जाति पर नमण संस्कृति का प्रभाव (निबंध), डॉ. महेन्द्र सागर प्रचंडिया, ऋषभ सौरभ, 1992
(2) नाग जाति और श्रमण संस्कृति, डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' ऋषभ सौरभ, 1992 23. हिन्दू सभ्यता, हिन्दी संस्करण, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, द्वितीय संस्करण, 1958, पृ. 23 24, जैन संस्कृति का विश्वव्यापी प्रसार (निबंध), डॉ. गोकुलप्रसाद जैन, ऋषभ - सौरभ, पृ. 27
प्राप्त -30.12.99
अर्हत् वचन, जनवरी 2000