Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ में आदिनाथ के स्मरण को अड़सठ तीर्थों की यात्रा के समान फलदायी बताया है। 15 भागवतपुराण में उन्हें अष्टमावतार कहा है। 16 ___ अथर्ववेद में व्रात्यकाण्ड में ज्ञान - धान्य और साधना से समन्वित आध्यात्मिक व्रती का स्वरूप वर्णित है, जिसकी तुलना कैवल्य प्राप्ति हेतु ध्यानस्थ एवं ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् सभी जीवों को आध्यात्मिक और लौकिक जीवन के कल्याण का मार्ग बताने वाले ऋषभदेव से की जा सकती है व्रात्यों और मुनियों की चर्या में भी साम्य है। इसी तरह और भी अनेक सन्दर्भ हैं, जो ऋषभदेव के जीवन प्रसंगों से जडते हैं। 17 प्रकृतिवादी मरीचि ऋषभदेव के पारिवारिक थे। शंकराचार्य ने भी अर्हन्तों की विचारसरणि का उल्लेख किया है। 18 वेदों में अर्हतों वातरशना मुनियों, यतियों, व्रात्यों, विभिन्न तीर्थंकरों तथा केशी वृषभदेव संबंधी स्थल जैन धर्म की प्राचीनता को पुष्ट करते हैं। 19 अन्य वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथों, पुराणों, उपपुराणों और इतर वैदिक साहित्य में सहस्राधिक स्थल हैं जो ऋषभदेव की महिमा से मंडित हैं। ___ वस्तुतः जब वेदों की रचना हुई तब श्रमण मुनियों के अनेक संघ विद्यमान थे और ऋषभदेव उससे भी पूर्व परम्परा से ही वन्दनीय थे। जैन कालगणना तीर्थंकर ऋषभदेव के अस्तित्व को संख्यातीत वर्षों में ले जाती है। डॉ. गोकुलप्रसाद जैन ने स्वयंभुवा मनु की पाँचवीं पीढ़ी के वंशज ऋषभदेव का समय 27000 वि.पू. संकेतित किया है। 20 साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि ऋषभदेव और उनकी परम्परा में हए अन्य तीर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित महान संस्कृति और सभ्यता का प्रचार-प्रसार समग्र भारत में प्राग्वैदिक काल में ही हो गया था। तदन्तर वह विश्वव्यापी हई और यूरोप, रूस, मध्य एशिया, लघु एशिया, मेसापोटिमिया मिस्र, अमेरिका, यूनान, बेबीलोनिया, सीरिया, सुमेरिया, चीन, मंगोलिया, उत्तरी और मध्य अफ्रिका, भूमध्यसागर क्षेत्र, रोम, ईराक, अरेबिया, इथोपिया, रोमानिया, स्वीडन, ब्रह्मदेश, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, श्रीलंका आदि समस्त देशों में फैल गई। 4000 ई.पू. से लेकर ईसा काल तक और तदुपरान्त भी यह जैन संस्कृति प्रचुरता में संसार भर में विद्यमान रही। 21 भारत में आर्यों के आगमन के पूर्व यहाँ श्रमण संस्कृति व्याप्त थी। प्रागार्य तथा प्राग्वैदिक कालीन संस्कृति का सीधा संबंध द्रविड, व्रात्य,आर्हत् या श्रमण संस्कृति से है। नाग जाति पर भी श्रमण संस्कृति का प्रभाव परिलक्षित होता है। 22 पुरातत्त्ववेत्ताओं ने ऋषभदेव का समय ताम्रयुग 23 के अन्त और कृषि युग के प्रारम्भ में लगभग 9000 ई.प. माना है। 24 पाश्चात्य विद्वान मेजर जनरल जे.सी.आर. फर्लाग की मान्यता है कि ईसा से अनगिनत वर्ष पूर्व भारत में जैन धर्म फैला हुआ था। आर्यों के आगमन के पूर्व यहाँ जैन धर्म के अनुयायी अवस्थित थे। वाचस्पति गैरोला, श्री विसेन्ट ए स्मिथ, ईस्ट इंडिया कम्पनी के पादरी रेवरेण्ड एब्बे जे. ए. डुबाई, डॉ. हर्मन जैकोबी, स्टीवेन्सन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. लक्ष्मीनारायणसाहू, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन तथा पं. राम मिश्र शास्त्री प्रभृति पाश्चात्य और भारतीय मनीषियों की उक्तियों का यही निष्कर्ष है कि जैन धर्म सृष्टि का आदि धर्म, सर्वप्राचीन धर्म तथा सच्चा धर्म है और इसके संस्थापक ऋषभदेव हैं। प्रो. मेक्समूलर ने जैन धर्म को किसी हिन्दू या अन्य धर्मों की शाखा नहीं अपितु स्वतंत्र धर्म माना है। डॉ. रामधारीसिंह दिनकर ने भी कहा है कि बुद्ध ने जो मार्ग अपने अर्हत् वचन, जनवरी 2000

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104