Book Title: Arhat Vachan 2000 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 8
________________ सुधार की एक श्रृंखला शुरू होती है। प्रचार-प्रसार के इस युग में रचनात्मक कार्य करने वाले बंधुओं में पारस्परिक सम्पर्क को विकसित करने हेतु तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ ने 108 पृष्ठीय 'सम्पर्क' शीर्षक डाइरेक्टरी का प्रकाशन किया है जिसमें जैन विद्या के अध्येताओं/जैन पत्र पत्रिकाओं/जैन शोध संस्थानों/ जैन प्रकाशकों की अद्यतन सूची सम्पूर्ण पतों सहित प्रकाशित है। यह डाइरेक्टरी कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के कार्यालय में रु. 50.00 में उपलब्ध है। समाज में प्रत्येक रूचि के व्यक्ति के करने के लिये बहुत काम हैं, बड़ी बात तो नहीं किन्तु जनगणना के आंकड़ें बताते हैं कि आज समाज में निरक्षर भी हैं। उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिये तथा उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर दिलाने हेतु महज कुछ लोगों की जरूरत है जो समय देकर इन निरक्षरों को साक्षर बनाकर ज्ञानदान का असीम पुण्य अर्जित कर सके। राष्ट्र और समाज की सेवा तो होगी ही। हमारे परिवार में बच्चों को जैनधर्म के बारे में गलत जानकारियाँ पढ़ाई जा रही हैं और हम मौन हैं। 23 जैन तीर्थंकरों के अस्तित्व को नकारा जा रहा है, उन्हें कपोल कल्पित बताया जा रहा है और हम मौन है। एक परिपक्व दर्शन और धर्माचरण की सुदीर्घ परम्परा को झुठलाते हुए उसे किसी एक धर्म की शाखा अथवा ढाई हजार वर्ष पूर्व की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों की प्रतिक्रिया रूप में जन्मा धर्म या उपासना पद्धति के रूप में निरूपित किया जा रहा है और हम मौन हैं। इस मौन को भंग करने हेतु जन-जन को जैन धर्म की प्राचीनता, 24 तीर्थंकरों की सुस्थापित परम्परा, भगवान ऋषभदेव द्वारा दिये गये षट्कर्मों के उपदेश एवं उसकी अन्तर्निहित भावना के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रशस्त प्रेरणा से एवं उनके ही मार्गदर्शन में समाज द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भगवान ऋषभदेव निर्वाण महामहोत्सव का आयोजन किया जा रहा है जिसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री अटलबिहारी बाजपेयीजी द्वारा सम्पन्न हो चुका है। उद्घाटन अवसर पर उनके द्वारा दिया गया उद्बोधन इसी अंक में पृ. 91, 92 पर पठनीय है। यह सकारात्मक सोच के आधार पर किया गया रचनात्मक कार्य है इससे जन-जन में जैनधर्म, जैन संस्कृति, जैन परम्परा का प्रचार होगा। इससे जैन धर्म के सिद्धान्तों की आवश्यकता, उपयोगिता और प्रासंगिकता को जानकर जनता में इसके प्रति सम्मान बढ़ेगा। इस कार्य से सबका हित जुड़ा है, किसी का भी विरोध नहीं है। साधुओं को ऐसे ही कार्य हस्तगत करना चाहिये। मुनि श्री सुधासागरजी महाराज की प्रेरणा से भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर की लन्दन म्यूजियम में सुरक्षित 2000 वर्ष प्राचीन मर्ति के चित्र एवं विश्वविख्यात दार्शनिक सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन के जैनधर्म की प्राचीनता विषयक विचार से युक्त लेमिनेटेड चित्र दसियों हजार की तादाद में भारत के कोने-कोने में पहुँचाये गये। यह कार्य प्रशंसनीय है। मेरा सभी से अनुरोध है कि वे अपने ज्ञान, प्रतिभा एवं क्षमता का उपयोग ऐसे कार्यों में जरूर करें जिससे समाज का कुछ लाभ हो, जैन संस्कृति का मान बढ़े, मानवता का कल्याण हो। परस्पर आलोचना, प्रत्यालोचना, आधारहीन अनर्गल बातों के प्रचार से बचकर हमें अपनी शक्ति का उपयोग सृजन में करना है। यही युग की आवश्यकता है। यदि हमनें इस ओर दृष्टिपात नहीं किया तो जैनत्व की अपरिमित क्षति होगी। अर्हत वचन के प्रस्तुत अंक में हमनें भगवान ऋषभदेव से संबंधित 4 आलेख प्रकाशित किये हैं। इस निर्वाण महामहोत्सव वर्ष में हम और भी सामयिक आलेख देते रहेंगे। प्रस्तुत अंक पर सुधी पाठकों की प्रतिक्रियायें सादर आमंत्रित हैं। मैं संपादक मंडल के सभी माननीय सदस्यों तथा विद्वान लेखकों के प्रति भी उनके सहयोग हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। 15.2.2000 डॉ. अनुपम जैन अर्हत् वचन, जनवरी 2000

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