________________
23.3
(1) जब नराधिप (दशरथ) चिन्ता में डूबे हुए (थे), तब (ही) बलदेव (राम) निज भवन को गए। (2) माता के द्वारा आता हुआ उदास मनवाला (राम) देखा गया। फिर भी (माता के द्वारा) हँसकर प्रियवाणी से कहा गया- (3) प्रतिदिन (तुम) घोड़े और हाथी पर चढ़ते थे, आज बिना जूतों के (नँगे) पैरों से कैसे? (4) प्रतिदिन (तुम) स्तुति-गायकों के समूहों द्वारा स्तुति किए जाते थे, आज स्तुति किए जाते हुए कैसे नहीं सुने जाते हो? (5) प्रतिदिन (तुम) हजारों चँवरों से पंखा किए जाते थे, आज तुम्हारे आस-पास में कोई भी क्यों नहीं है? (6) प्रतिदिन तुम लोगों के द्वारा राणा (छोटे राजा) कहे जाते थे, आज (तुम) निस्तेज क्यों दिखाई देते हो? (7) उसको सुनकर बलदेव (राम) के द्वारा कहा गया- भरत को सम्पूर्ण राज्य ही दे दिया गया है। (8) हे माँ! (मैं) जाता हूँ, (तुम) मन की अवस्था में दृढ़ रहना, जो (मेरे द्वारा) कष्ट पहुँचाया गया (है), उस सबको (तुम) क्षमा करना।
घत्ता - जिस तरह से माता पूछी गई (उसके परिणामस्वरूप) हाय पुत्र! कहती हुई (वह) महादेवी अपराजिता धरती पर रोती हुई गिर पड़ी।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org