Book Title: Anuyogdwar Sutram Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48 अनुस्य द्वार सूत्र-चतुर्थ जस्थविय न जाणेजा चउक्कगंर निक्खिवे तत्थ॥१॥६॥से कि तं आवस्सयं? चिहं पण्णतं तंजहा- नामावरसयं, ठवणावरसयं, दव्यावस्सयं, मानवतयं // 7 // से कि तं नामावस्सयं ? नामावस्मयं जस्सण जीवस्स वा, अर्जवस्त वा.जीवाणं वा,अजीवाणं वातदुभयरस वा.तभयाणंबा,आवस्सएत्ति नाम कजइ, सेतं नामावस्सयं // 8 // से किं सं ठरणावस्सयं ? ठवणावस्सयं जण्णं कट्टकम्मेवा, चिनकम्मेवा, पोत्थकम्मे वा, लेप्पकम्मे वा, गंथिमे वा, वेढिमे वा, स्वरूप से न जान तो अन में भी चार निक्षेप करे, इस लिये यहां आवश्यक का वर्णन करते हैं ! पल-महो भगवन् ! आवश्यक किसे कहते हैं ? उत्तर-अहो शिष्य ! आवश्यक के चार भेद हे हैं / नन के नाम-१ नाम आवश्यक 2 स्थाना आवश्यक, 3 द्रव्य आवश्यक और 4 भाव आवश्यक // 7 // प्रश्न-अहो भगवन् ! नाम आवश्यक किसे कहते हैं ? उत्तर-अहो शिष्य ! किसीने A एक जीव का. एक अजी। का, बहुतसे जीव का. पतसे अजीव का, एक जीव अजीव दोनों का,बहुतसे जीव अर्ज व दोनों का, 'आवश्यक ऐसा नाम रख दिया. उसे भाम आवश्यक कहते हैं / / 8 // प्रश्न-अहो भगव स्थापना आवश्यक किसे कहते हैं? उत्तर-होशिश्य स्थापना आवश्यक के४० भेद कहहैं यथा-१काष्ट को कोर करवानाय हुआ रूप (पुरुषदि का आकर) 2 चित्र कर बनाया हुआ रूप 3 वर का बनाय हुआ रूप . आवश्यकपर-चार निक्ष For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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