Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2982 अर्थ P8+ एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल. गोय पवत्तइ // इमं पुण पट्टवणं पडुच्च अंगवाहिरस्स उद्देसो जाव अणुओगोय // 3 // जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो जाव अणुओगो य किं कालियस्म उद्देसो जाव अणुओगो उवालयस्म उद्देस्रो जाव अणुओंगो ? कालियस्सवि उद्देसो जाव अणुओगो उकालियस्सवि उद्देसो जाव अणुओगो / इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च उक्कालिअस्स उद्देसो जाव अणुओगो // 4 // जइ उक्कालियस्स उद्देसो जाव अणुओगों किं आवस्सगस्स उद्देसो जाव अणुओगो,आवस्सगवितिरित्तस्स उद्देसो जाव अणुओगा?आ. वस्स्गस्सवि उद्देसो जाव अणुओगोआवस्सय वइरित्तस्सवि उद्देसो जाब अणुओगो। इमं वाहिर सूत्र-श्रुत ज्ञान के उद्देशादि विद्यमान है, // 3 // प्रश्न-महो भगवन् ! यदि अंग बाहिर के सूत्रों में श्रुत ज्ञान के उद्देश समुद्देशादि विद्यमान है तो क्या कालिक सूत्र कि जो दिन रात्रि के प्रथम व अंतिम प्रहर में पठन किये जाते हैं उन के उद्देशादि है अथवा उत्कालिक सूत्र कि जो अनध्याय काल छोड कर शेष सर्व काल में पठन पठान किये जाते हैं. उस के उद्देशादि है? उत्तर-अहो शिष्य? कालिक उत्कालिक दोनों सूत्र के उद्देशादि हैं और वर्तमान अनुयोग प्रारंभ की अपेक्षा उत्कालिक सूत्र के उद्देशादि भी हैं। // 4 // प्रश्न-अहो भगवन् ! यदि उत्कालिक सूत्र के उद्देशादि हैं तो क्या आवश्यक सूत्र के उद्देशादि है या आवश्यक से व्यतिरिक्त (बाहिर) सूत्र के उद्देशादि हैं? उत्तर-अहो शिष्य ! आवश्यक के उद्देशादि हैं और आवश्य से व्यतिरिक्त के भी उद्देशादि हैं और यहां अनुयोग का वर्णन करते हुए आमश्यक सूत्र के अनुयोग आवश्यकपर-चार निक्षेपे 84988 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 373