Book Title: Anuyogdwar Sutram Author(s): Publisher: View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 48 अनुवादक वाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालके ऋषिजी सिजंति, णो अणुण्णविजंति, // 1 // सुयनाणस्स-उद्देसो,समुद्देसो,अणुष्णा अणुओगो य, पवत्तइ // 2 // जइ सुथनाणस्स-उद्देसो, समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पबत्तह; किं अंगपविट्ठस्स-उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओगो य पवनइ ? किं अंगवादिरा उद्देसो, समुद्देसो, अणुण्णा, अणुओंगो य पवत्तइ ? अंगपविटुन्सवि उदेलो सरस) अणुण्णा अणुओगोय पवत्तइ, अंगवाहिरस्सवि उद्देसो समुद्देसो अशागा - Yओ- / ज्ञान लोक में व्यवहार के उपयोगी नहीं होने से पृथक किये गये हैं अर्थात् उनका न यहां नहीं बै करते हैं क्यों कि मति ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनः पर्यव ज्ञान, और केवल ज्ञान से हरा न. उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा व अनुयोग नहीं करते हैं. और श्रुतज्ञान उद्देश, समुदेश, अनुज्ञा व अनुयोग करता है. इस का कथन प्रश्नोत्तर द्वारा विस्तार पूर्वक आगे किया गया है. // 2 // प्रश्न-अहो भगवन् ! यदि श्रुत ज्ञान ही उद्देश. समुद्देश, अनज्ञा व अनुयोग करता है तो वह क्या अंग प्रविष्ट जो आचारंगादि में श्रुतज्ञान है उसक+उद्देशादि करता है अथवा अंग वाहिर जो उत्तराध्ययनादिमें श्रुतज्ञान है सेर उद्देश :समुद्देशादि करता है? उत्तर-अहो शिष्य-अंग प्रविष्ट सूत्रों व अंगाहिर सूत्रों को दोनों साश्रुत ज्ञानी के उद्देशा समुद्देशादि विद्यमान है. परंतु वर्तमान में जो अनुयोग का आरंभ किया है. इस अपेक्षा अंग +1 उद्देश-पढने की आज्ञा, 2 समुद्देश-पढा हुना ज्ञान में स्थिर करना, 3 अनुज्ञा-अन्यको पढ़ाने की आज्ञा करना, और 5 अनयोग विस्तार से व्याख्या करना.. * प्रकाशक-राजाबहादालाला मुखदेवसहायनी ज्वालामसादजी For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 373