Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 11
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 11 - बनारस एवं गुजरात विश्व विद्यालयों, पूना- हैद्राबाद - अहमदाबाद - ग्वालियर आदि के संगीत विद्यालयों, लीकांचन पूना जसीडीह- कलकत्ता-हैद्राबाद आदि के नैसर्गिक चिकित्सालयों, इत्यादि अनेक स्थानों में हमारी परा अपरा दोनों प्रकारों की विद्या प्राप्ति की जिज्ञासा पूर्ति का सुदीर्घ पुरुषार्थं चला। उसकी भी लंबी कहानी है। परन्तु इन सभी के बीच हमारी आत्मखोज एवं महावीर खोज की कहीं विस्मृति नहीं हुई किसी को इस काल में शायद ही लाभ प्राप्त हुआ है। ऐसा अनेक क्षेत्रों के, अनेक महान गुरूजनों का हमें अपार लाभ प्राप्त हुआ । यह सारा जन्मजात जिनधर्म का, उपकारक माता-पिता का एवं महान उपकारक परमगुरुओं का ही प्रताप और परमोपकार ! इस गुरुगम से संप्राप्त तत्त्वदर्शन, साहित्य, संगीत, निसर्गोपचारादि अनेक परा अपरा विद्याओं के साथ सदा ही उपर्युक्त आत्मखोज और आत्मार्थ दृष्टि सजग बनी रही, बन सकी, यह हमारा अवश्य ही परम सौभाग्य । • महावीर दर्शन महावीर कथा - अध्ययन-काल के पश्चात् महाविद्यालयों के विविध स्थानीय दीर्घ अध्यापन-काल और लेखनसम्पादन काल में भी यह दृष्टि स्थायी रही और ध्यान-धारा भी नित्यनूतन रूपों में प्रवाहित होती रही । इसका भी फिर एक इतिहास है। इन सभी से फिर निष्पन्न हुई जिनभक्ति, जिन-ध्यान, जैनदर्शन साहित्यादि आधारित संगीतधारा, ध्यान-संगीत धारा : श्री आत्मसिध्धि एवं श्री भक्तामर स्तोत्र से लेकर शताधिक रिकार्डों के निर्माण के रूप में । यहाँ भी जिन चरित्र महावीर चरित्र केन्द्रस्थ रहे । इसी बीच देश-विदेश में गुरुकृपा से २५ बार हमारा 'कल्पसूत्र' पर्युषण-प्रवचन क्रम चला । परिसृजन प्रथम 'महावीर दर्शन' का, पश्चात् 'दादागुरु दर्शन', 'बाहुबली दर्शन' आदि का पंथमुक्त संप्रदायातीत महावीर मूल की खोज का उपर्युक्त सारी विद्या-साधनाओं, तीर्थयात्राओं, ग्रंथानुशीलन, गुरुगम मार्गदर्शनों एवं स्वानुभवध्यानों की फलश्रुति रूप एक दर्शन-अंतर्दशन हुआ महावीर के अंतर स्वरूप का उस दर्शन के केन्द्र में सर्वत्र प्रकाशित और ध्वनित होता रहा उनके आत्मज्ञान का सर्वोपरि घोषमंत्र 'जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ " । इसी के ईर्दगिर्द, प्रमुख रूप से श्री कल्पसूत्र एवं श्रीमद् राजचन्द्रजी के आत्मदर्शन आधारित महावीरजीवन एवं दर्शन का सहज रूप से निर्माण होता चला महावीर दर्शन (हिन्दी LP) के प्रथम परिसृजन के रूप में 2500 वे निर्वाणोत्सव समय । तब से हमने कालेज- अध्यापन का (सत्य सांईबाबा कालेज विभागाध्यक्ष कार्य का ) सदा के लिये त्याग कर भगवान महावीर एवं जिनवाणी सरस्वती के चरणों में (जोखिम भरा फिर भी प्रसन्न ) जीवन समर्पण किया। प्रतिकूलताओं के बीच से भी हमारी जीवन यात्रा चली। दिवंगता विदुषी ज्येष्ठ सुपुत्री कु. पारुल ने म.द.का अंग्रेजीकरण किया और जीवनसंगिनी सुमित्राने गुजराती रूपांतरण । 2600 वे महावीर जन्मोत्सव (2001) कलकत्ता से लेकर अब विशाल विश्व फलक पर प्रस्तुत है हमारा महावीर दर्शन महावीर कथा महाजीवन । प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया (बेंगलोर, 21-3-2016) ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ (11) -

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