Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 41
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 - 41 (गान : F वृंद) • अंतर्लोक में पूर्वदर्शन • प्र. रुक जायें पलभर तो वर्तमान की दौड़ धूप से..... इस विकराल वर्तमान के, कराल कलिकाल पंचमकाल के भयावह बहिर्जीवन से ( क्षण भर रुकें) और संचरण कर पहुँच जायें पुराणपुरुष परमपुरुष प्रभु महाप्रभु महावीर के उस पवित्र काल के अभय, अद्वेष, अखेदभरे अंतजीवन में..! Tr महावीर दर्शन महाजीवन मंच कथा आलोक से भरे उस अंतर्जीवन में, अनंत वीर्य अनंत सामर्थ्य से अतल गहन तल में !! उस अंतर्लोक में, आत्मा के भरे उस आत्मसागर के रत्नग हाँ, वह अंतस्-सागर, वह अंतर्लोक... उसका वह अतल गहनतल - जहाँ विलसित हो रहा है - विस्तरित पड़ा है उस परमपुरुष का विराट, विशाल, भव्य जिन-मंदिर, विश्वतारक, सर्वोदय तीर्थरूप जिनशासन का वीर मंदिर !!! *** ... "भविजन ! मंदिर देखें वीर के रे लोल.... कुछ प्रकटे अलौकिक नूर रे... भविजन. बैर ज़हर से यह विश्व अति तड़पता रे लोल..... • महावीर दर्शन महावीर कथा यहाँ प्रेम का आनंद भरपुर रे... भविजन. राग-द्वेष के विकार ठौर ठौर ( चहुँ ओर) भरे रे लोल..... यहाँ अचल अविकारी स्वरूप रे... भविजन." - ..... - - 'चित्तमुनि' : संतशिष्य संपा. 'प्रार्थना मंदिर' : पृ. 119-20 : गुज. से ) -Small fonds (प्र.) हाँ, यह वही विराट विशाल मंदिर वीर का, वीर के भव्य, अविभाजित शासन का...! ... अंतर्-ध्यान- आत्मध्यान के महाशासन का !! 2500-2600 वर्षों से वह डूबा रहा उस महासागर के गहन अंतस्तल में विस्मृत विभाजित, वेदनाग्रस्त बनकर !!! 7 1 स्वयं के अंतर के आलोक में आत्मा के अविच्छिन्न प्रकाश में उसे दूबा हुआ देखा वीर के ही उस काल के एक 'लघु शिष्य' ने वर्तमान काल में आकर अतीत से । (प्र. ) उस क्षत-विक्षत अवस्था में उसे उस (विशाल वीर - शासन मंदिर को ) दयनीय दशा में निहारकर उसका हृदय रो उठा, मचल उठा . वेदना-विगलित लक्ष्य से उसने इस कराल कलिकाल में इस जम्बू- भरत में आकर, उसे उसके अविच्छिन्न, अखंड, मंगलस्वरूप में बाहर ऊपर उठाकर, वर्तमान में लाकर रखा उसका अंतर्घोष और सर्वजग को सुनाया ..... सुना - (41) 1 - प्रभु

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