Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 71
________________ Second Troor DL. 31-3-2016-71 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • (प्र. F) और दो दो हजार वर्ष तक महान वीतराग-शासन को भी व्रणग्रस्त-भेदविभक्त रखनेवाली, प्रभु वीर की विदा की हृदयविदारक बेला निकट आ गई... (प्र. M) समीप आ गये परमप्रभु के परिनिर्वाण के परमप्रस्थान के पल..... (Super Pathetic Rendering & Tragic Most Bhairavi Inst.) (प्र. F) सुधर्मा स्वामी के प्रश्नोत्तर पूर्ण वह अलौकिक समवसरण... । तत्पश्चात् धर्मपाल राजा का वह प्रशांत सभाभवन... ॥ (प्र. M) राजाओं, श्रावकों, शिष्यों समक्ष वह अभूतपूर्व अखंड, अंतिम देशना..... और अमावास्या की वह अंतिम रात्रि...!!! (Silent Most Pathetic Music) (Serene, pathetic, deeply snetimental) (प्र. F) सोलह प्रहर... अड़तालीस घंटे... दो दिन-रात अखंड बहने के बाद, अचानक - (Echoes : Instmetl. Musical Pathog) (4. M) (Pathetic-Most Rendering in Base Voice : Echoes BGM Instl. Contd.) ..... पूर्ण होने लगी प्रभु की वह अखंड बहती वाग् धारा.... पर्यंकासन में स्थिर हुई उनकी स्थूल औदारिक काया..... मन-वचन-शरीर के व्यापारों का उत्सर्ग किया गया.... अवशिष्ट अघाती कर्मों का सम्पूर्ण क्षय किया गया..... सभी क्रियाओं का उच्छेद किया गया और - - ब्रह्मरंध्र सहस्रदलकमल एवं सभी अंगों और (Deep Base Voice) संगों को भेद कर प्राणों को विशुद्ध सिध्धात्मा की निष्क्रीय, निष्कम्प, निस्पन्द, नीरव और मेरु-सी अडोल अवस्था तक पहुंचाया गया..... (Pathetic Base) (प्र. F) ..... जब प्रभु सर्वांग अनुभूति कर रहे - (घोष M) "अहमिक्को खलु सुध्धो, निम्मल नाण-दसण संजुओ, .. न घि अस्थि मम किंचई, एक परमाणु मित्तंपि"। (समयसार) "एक परमाणु मात्र की मिले न स्पर्शता ।। __ पूर्ण कलंकरहित अडोल स्वरूप रे । शुद्ध निरंजन चैतन्यमूर्ति अनन्यमय, अ-गुरु-लघु, अमूर्त सहजपद रूप रे ॥" (- श्रीमद् राजचन्द्र : अपूर्व अवसर) (प्र. F) और जब कि अंत में एक शब्दहीन घोष (अनाहत-अनहद घोष) उठा : + S (71)

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