Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 97
________________ First Proof Dt. 27-2-15 - 13 · · जिनमार्ग परिचय • जैन धर्म महानता जिन वीर महिमा • स्याद्वादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते । नास्त्यन्यपीडनं किंचिद, जैनधर्म: स उच्यते ॥ अनेकान्त की दृष्टि जहाँ है, और न पक्षपात का जाल मैत्री करुणा सब जीवों पर, जैनधर्म है वह सुविशाल । पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ " - उपाध्याय अमरमुनि । भव बीजांकुर जनना, रागादयः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो, जिनो वा नमस्तस्मै ॥ 7 आचार्य हरिभद्र सूरि । - आचार्य हेमचन्द्रसूरि "बुद्ध वा वर्धमानं, शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा । " "बुध्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहें ।" जुगलकिशोर मुख्तार ( वीतरागस्तोत्र ) तव चेतसि वर्तेऽहमिति वार्तापि दुर्लभा । मच्चित्ते वर्तसे चेत्वमलमंचेत केनचित् ॥ चतुर्वर्गफलां नित्यं जैनीं वाचमुपास्महे । रुपैदादशभिर्पिश्यं यथा नाट्ये धृतं पथि ॥ १ ॥ - ('नाट्यदर्पण: रामचन्द्र गुणचन्द्र) "बंध - मोक्ष की यथार्थ व्यवस्था जिस दर्शन में यथास्थित कही गई है वही दर्शन मोक्ष का निकटतम कारण है। इस यथार्थ व्यवस्था को कहने योग्य यदि हम किसी को विशेष रूप से मानते हैं, तो वह श्री तीर्थंकर देव ही हैं। श्रीमद् राजचंद्रजी "वे ( श्रीमद् राजचंद्रजी ) मुझे कहते थे कि, जैनधर्म के प्रति मेरा परिपूर्ण आदरभाव है, क्योंकि जिनागम साहित्य में आत्मज्ञान की पराकाष्ठा है । महात्मा गांधीजी - —

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