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Second Proof DL 31-3-2016-66
• महावीर दर्शन महावीर कथा
(प्र. M) "अंततोगत्वा वह सागरवत् गम्भीर ही तो है अपना सिद्ध, बुद्ध, शुद्ध स्वरूप... ! उसकी सिद्धि पाने के लिये ही तो हम प्रार्थना करते रहे हैं सदियों से, युग युगान्तरों और जन्म-जन्मांतरों से उस आलोकमय सिद्धलोक के सिद्ध भगवंतों से
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(प्र. F) "चंदेसु निम्मलयरा, आइच्येसु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा! सिद्धि मम दिसंतु... ।"
(वृंदगान धोष M) “आत्मसिद्धि मम दिसंतु - शुद्धात्मसिध्धि मम दिसंतु शुद्धात्मसिध्धि मम दिसंतु सहजात्मसिद्धिं मम दिसंतु ।" (स्व. कु. पारुल टोलिया, प्रियवादिनी, पारुल प्रसून : 18 ) (प्र. F) सर्वज्ञ, सिद्धलोकगामी प्रभु महावीर का ऐसा सभी को आत्मसिद्धि दिला देनेवाला, झकझोर कर प्रशांत अंतस्- सागर में प्रवेश करा देनेवाला आत्मबोध होते हुए भी और उनकी सर्वज्ञात विश्वमहिमा एवं 34 चौतीस अतिशयों युक्त अधित्य सामर्थ्य तथा माहात्म्य होते हुए भी
(Instmtl. BGM)
( गीत M: लोकधुन ) "एक दिन पूर्व का शिष्य गोशालक, प्रभु को देता गाली । "मैं सर्वज्ञ महावीर जैसा' कह के चली चाल काली ॥ तेजोलेश्या छोड़ के उसने चेताई आग की ज्वाला; वीर के बदले खुद ही उस में जलने लगा गोशाला ॥"
(Soormandal)
(प्र. F) सर्व को सुख-शांति शांता आत्मबोध प्रदाता भगवंत के सर्वमंगलमय सर्वोदय तीर्थ का, उनके आत्मदर्शन-प्रधान महाशासन प्रवर्त्तन-' धर्मचक्र प्रवर्त्तन का आधार क्या था ? आधार था
(प्र. M) आधार था साढ़े बारह वर्षों के पूर्वोक्त सुदीर्घ, गहन, बाह्यांतर आत्मध्यानमय मौनके पश्चात् प्रस्फुटित उनकी ॐकार दिव्यनाद दिव्यध्वनिमयी, अनंत अनंत नयों, दृष्टिकोणों से भरी हुई अमृतरूपिणी देशनावाणी
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(प्र. F) गंगा के निर्मल नीर जैसी उनकी वाणी में अपूर्व संमोहन था, जादु था, अमृत था, अनंत सत्य का भावबोध था
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( गीत : राग केदार : ( Instmtl. BGM)
"अनंत अनंत भाव भेद से भरी जो भली, अनंत अनंत नय निक्षेप से व्याख्यानित है। सकल जगत हित कारिणी हारिणी मोह, तारिणी भवाब्धि मोक्षचारिणी प्रमाणित है ।" (. अनंत) श्रीमद् राजचंद्रजी ) Treate
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