Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 65
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 65 (प्र. F) तो बाह्यजगत् में थे करुणा-प्राणीदया-प्रसूत, हिंसा महाहिंसा- पशुबलि रोधक प्रवर्तन और साथ में ही दस दस हजार के विराट गोकुलों में गोपालन कृषि आदि द्वारा आनंद आदि दसदस श्रावक उपासकों का गृहवास दान अपरिग्रहयुक्त मूर्खरहित गृहवास ! (BGM गान पंक्ति ) - ********.... • महावीर दर्शन (प्र. M) जीवन के बाह्यजगत् अंतर्जगत् दोनों पक्षों के संतुलन से भरा भगवंत का एक अनन्य, अनुपमेय, अभूतपूर्व जीवन-दर्शन था .... ... (प्र. F) इस जीवनदर्शन महावीर दर्शन के सारे ही बाह्यांतर स्वरूपों में सदा सर्वदा शीर्षस्थान पर बना रहा था उनका, अंतस् स्रोत का आत्मदर्शन ! .... देह-वादी नहीं, आत्मवादी दर्शन !! प्रत्येक मनुष्य को वे, उसके भीतर छिपा इस अपार अनंत सामर्थ्यवान स्वयं शक्ति के सागर का दर्शन करा रहे थे महावीर कथा (प्र. M) 'दर्शन' ही नहीं, उसकी अनुभूति की अतल गहराई में अंतर्यात्रा करा देते थे .... क्या भरा पड़ा था वहाँ पर ? - (प्र. F) वहाँ प्रवेश करने पर एक सामान्य गोताखोर मानव भी एक दूबकीभर लगाते ही अनुभव कर उठता था कि " ( गान M) "सीप किनारे चमकीले हैं, चुनकर क्यों पछताना ? यदि तू चाहे मोती लेने, (तो) गहरे पानी आना..... ।" आनंद, सुख, शांति के मोती ..... । (प्र. M) मोती तो गहरे पानी में हैं ( घोष ) " हे जीव ! भ्रमित मत हो । सुख और शांति भीतर में हैं, बाहर खोजने से नहीं मिलेंगे, भीतर का सुख स्वयं की समश्रेणि में है... उसे पाने के लिये बाहरी पदार्थों का आश्चर्य भूल जा और समझेणि के गहरे पानी में (प्रवेश कर) आ जा, जहाँ ( श्रीमद्जी : वचनामृत ) (65) (संकलित ) (प्र. F) जहाँ नहीं है (प्र. M) "शब्दों का हाहाकार (और), विचारों का विस्तार और संकल्प-विकल्पमय मन का संसार !..... आखिर इन सभी के पार तो है विराजित प्रशांत महासागर, अपने भीतर लहराता हुआ !" (प्र. F) " भीगी भीगी शांत नीरवता में काल जब खो जाता है और अपना प्रिय ऐसा एकांत जब अस्तित्व धारण कर लेता है, तब अपने इस अंतरस्थ प्रशांत महासगार तक पहुँचा जाता है और पाया जा सकता है उसकी अतल गहराई में डूब जाने का आनन्द एवं ( वहाँ स्थित ) मूल्यवान मोतियों का खज़ाना...... !" -

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