Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 68
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016-68 ( गान F) (प्र. M) प्रभु ने अपने जीवनान्त के पूर्व जीवन-संध्या में जो महत्त्व की बात अपनी अंतिम धर्मदेशना में कही थी, वह थी पुण्यकर्म फल- पापकर्म फल के पचपन 55 + पचपन 55 अध्ययनों के बाद विनय की, विनय - माहात्म्य (महिमा ) की । - • महावीर दर्शन (प्र.F) 36 छत्तीस उत्तराध्ययनों में (यह) विनय-महिमा विनय का राजमार्ग दर्शानेवाले उनके ये 'विनय-सूत्र' थे : ( गान M ) "ऐसो मारग विनय को, कह्यो जिनेन्द्र अराग । मूल मार्ग के मर्म को समझे कोई सुभाग्य ॥ " ( सहजानंदधनजी सप्तभाषी आत्मसिद्धि 20 ) " - : એવો માર્ગ વિનય તો, ભાળ્યો શ્રી વીતશગ મૂળ હેતુ એ માર્ગનો, સમજે કોઈ સુભાગ્ય.” - महावीर कथा (प्र. M) ( श्लोक - गान) (F) (BGM) जाग ! तुझ को दूर जाना ) (प्र. M) "जो गुरु की ( माता-पिता की भी ) आज्ञा का पालन नहीं करता, जो उनके पास उनकी देखरेख में (सद्गुरु-निश्रा में ) नहीं रहता, जो उनसे शत्रुता का बर्ताव रखता है, जो विवेकशून्य है उसे अविनीत कहते हैं।" (M) : (महावीर वाणी पं. बेचरदासजी-73) (प्र. F). "जो शिष्य अभिमान, क्रोध, मद या प्रमाद के कारण गुरु (मांबाप) की विनय भक्ति नहीं करता, वह इससे अभूति अर्थात् पतन को प्राप्त होता है जैसे बाँस का फल बाँस के ही नाश के लिये होता है, उसी प्रकार अविनीत का ज्ञानबल भी उसी का सर्वनाश करता है।" ( श्रीमद् राजचंद्रजी आ. सि. 20) " (महावीरवाणी : 78) (प्र. M) "अविनीत को विपत्ति प्राप्त होती है, और विनीत को संपत्ति- ये दोनों बातें जिसने जान ली हैं, वही शिक्षा प्राप्त कर सकता है।" ( महावीर वाणी : 79) "विद्या विनयेन शोभते... ।" (68) "स्वच्छंद मत- आग्रह त्यजे ( नशे ), बरते (विलसे) सद्गुरु लक्ष । कह्यो याहि सम्यकत्व है, कारण लखी प्रत्यक्ष ॥ ( सप्तभाषी - 17 ) “સ્વચ્છંદ મત આગ્રહ તજી, વર્તે સદ્ગુરુ લક્ષ; समति तेने लाजियुं, अरण गयी प्रत्यक्ष.” (आत्मसिध्धि 17 ) " रोके जीव स्वच्छन्द तब, पावे अवश्य मोक्ष । या विधि पाया मोक्ष सब, कहें जिनेन्द्र अदोष ॥" ( सप्तभाषी - 15 )

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