Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 39
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016-39 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • आंतर-स्वरूपों में से निष्पन्न ये बाह्यस्वरूप, सारे ही विश्व की उत्क्रान्ति करने की, विश्वकल्याण साधने की, विश्वशांति स्थापित करने की क्षमता रखते हैं। उसमें आंतर-बाह्य का भेद नहीं है, समन्वय और समग्रता है । आवश्यकता है आत्मा के आंतर-स्वरूप को विस्मृत नहीं करने की। आत्मा की सजगता और समानता सम्हालकर स्वयं के और सर्व के कल्याण की निष्कारण करुणायुक्त प्रवृत्तियाँ प्रसारित करने की । वर्तमान के योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी के शब्दों में आत्मा का भान-होश-रखकर जो कुछ किया जाय, वह सब सफल है, बिना उसके सब निष्फल !' वह अपेक्षा रखता है - व्यक्ति और समष्टि के जीवन की महाक्रांति की। इस सत्पुरुष के पूर्ववर्ती ऐसे श्रीमद् राजचन्द्रजी, महायोगी आनंदघनजी, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी और अनेक महत्पुरुषों ने आत्मदृष्टा-सर्वदृष्टा भगवान महावीर का यह आत्मबोध प्रतिध्वनित किया, इतना ही नहीं, स्वयं के जीवन और कवन के द्वारा पुरुषार्थ-प्रयोग में रखकर महावीरशासन को आलोकित किया। अब हमारे आराध्य एवं अनंत उपकारक भगवान महावीर का यह आत्मस्वरूप-आधारित एवं बाह्यांतर अखिलाई-समग्रता-संवादमय जीवन, जीवनदर्शन हम, उनके आराधक, कितना जानते हैं?...उनके महाजीवन के महत्-दर्शन और संदेश को हम कितना समझते हैं ?..... उसे हमारे वास्तविक, प्रायोगिक जीवन में कितना उतारते हैं ? ... उनकी मंगलमयी, कल्याणकारी जीवनकथा का हम सभी - हमारे बालक-बालिकाएँ, युवक-युवतियाँ, छोटे-बड़े सर्व आबालवृद्ध - कितना अवधारणअवगाहन-अनुचिंतन करते हैं ?... उसे यथातत्य जान-समझकर अपने चारों ओर के जीवन में प्रभावित करने हेतु प्रथम अपने ही जीवन में हम कितना आचार में लाते हैं ? ऐसे तो अनेक प्रश्न भगवंत का भव्य जीवनदर्शन- 'महावीर दर्शन' - हमारे सन्मुख प्रत्यक्ष एवं परोक्षरूप से रखता है - उनके स्वयं के ही अभूतपूर्व उपसर्गोंयुक्त फिर भी 'परिस्थितिअप्रभावित' सतत आत्म-केन्द्रित, आत्मध्यानलीन अवस्थामय, प्रेरक प्रसंगों के द्वारा ! इस उपक्रम में फिर अन्य प्रश्न भी उठे : भगवंत के 'अधिकृत' जीवन और जीवनप्रसंगों को किस प्रकार चयन करना और अवधारण करना....? भिन्न भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करनेवाले, भिन्न भिन्न आम्नायों का प्रतिनिधित्व करनेवाले केवल महावीर-जीवन ग्रंथों के द्वारा ?... सर्वाधिक प्रमाणभूत ऐसे श्री कल्पसूत्र, त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र, वर्धमान पुराण, महापुराण, विविध महावीर चरित्र आदि के द्वारा वह पुरुषार्थ भी किया गया, महत् पुरुषों-गुरुजनों के चरणों में बैठकर किया गया, उसे उस 'गुरुगम' से पाने और अंत में मौन अंतर-ध्यान की गुफाओं में प्रवेश कर, पैठकर प्रयत्न किया गया, देश-विदेशों में पचीसेक बार श्री कल्पसूत्र स्वाध्याय-प्रवचनों के द्वारा भी उसका मंथन-अनुचिंतन किया गया, दिगंबर आम्नाय के भी उपादेय तत्त्वों को प्रामाणिकरूप से, हंस-नीर-क्षीर-न्याय युक्त विवेकदृष्टि से अपनाते जाने का अभिगम तक अपनाया गया .....* * (विस्तार से दृष्टर्व आलेख : "अंतर्लोक में महावीर का महा जीवन ।" (39)

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