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Second Proof Di. 31-3-2016 . 50
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
(प्र. F) उक्त दृष्टा कवि ने तो जिनशासन की सन्नारियों में त्रिशला-देवानंदा दोनों के साथ यशोदा को भी यह अंजलि दी है - (कवित्त) "त्रिशला-देवानंदा दोनों प्रभु वीर की माता
शासन के इतिहास में दोनों का नाम अमर हो जाता । ब्राह्मण-क्षत्रिय जाति वंश के संस्कार (सब) भरनेवाली, वीर की पत्नी देवी यशोदा, जिसने नाम उजाला; पति के सुख के खातिर जिसने, अपना सुख बिसारा, आत्मविलोपन की यशगाथा, यशोदा लिखनेवाली ....."
(- श्री शांतिलाल शाह : 'स्तवन मंगल': 20) प्र. F) पर आत्म-लीन प्रभु वीर तो अपने निर्धारित सर्वसंगतपरित्याग-पथ पर प्रस्थान करने - (गान M) "साँप की केंचुलि माफ़िक एक दिन, इस संसार का त्याग करे ।
राजप्रासादों में रहनेवाला, जंगल जंगल वास करे ॥"
(Pathetic Instrumental Music : Raga Shivaranjani) (प्र. F) उनकी इस हृदयविदारक विदा के बेला, इस 'ज्ञातखंडवन' की घटा में खो जाते हुए उनको देखकर पत्नी यशोदा, पुत्री प्रियदर्शन ।। बहन सुदर्शना) एवं बंधु नंदीवर्धन के विरहवेदना से भरे विलाप-स्वर गूंज उठे - (BGM : Pathelie Music) (गीत : करूणतम श्लोक: M)
"त्वया विना वीर ! कथं व्रजामो, गोष्ठिसुखं केन... सहाचरामो ?..." (प्र. M) "हे वीर ! अब हम आप के बिना शून्यवन के समान घर को कैसे जायें ? हे बन्धु ! अब हमें गोष्ठि-सुख कैसे मिलेगा? अब हम किसके साथ बैठकर भोजन करेंगे?" (प्र. F) लेकिन निग्रंथ, निःसंग, निर्मोही महावीर तो चल पड़े हैं - प्रथम प्रस्थान से ही यह भीषण भीष्म-प्रतिज्ञा किए हुए कि - (सूत्रघोष प्रतिध्वनि-M) "बारह वर्ष तक, जब तक मुझे केवलज्ञान नहीं होगा, तब तक न तो शरीर की सेवा-सुश्रूषा करूँगा, न देव-मानव-तिर्यंच के उपसर्गों का विरोध करूँगा, न मन में किंचित् मात्र उद्वेग भी आने दूंगा।"
(- श्री कल्पसूत्र) (Thrilling Instrumental Effects) (प्र. F) यहीं से शुरु हो रही इन सभी भीषण प्रतिज्ञाओं की कसौटी-रूप उनकी साड़े बारह वर्ष की आत्म-केन्द्रित साधनायात्रा-जिसमें इन्द्र तक की सहाय प्रार्थना भी अस्वीकार कर के, और भी भीषण प्रतिज्ञाएँ जोड़ते हुए, वे आगे चले..... (Soormandal : Cloud Burst, Beast-Roaring, Forest Horrors' Effects...)
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