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Second Proof DL 31-3-2016 - 61
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
षट्पदों के द्वारा कर्म, पुण्य-पाप, आश्रव-संवर-बंध-निर्जरा-मोक्षादि नव (या सात) तत्त्वों को यथातथ्य समझा दिया शेष सारे पंडितों को । उन अन्य १० गणधरों को लेकर सभी 4400 शिष्य बने । (प्र. F) इस विशद चर्चा के परिणाम स्वरूप गणधरवाद' बना,जो गुजराती आत्मसिद्धिशास्त्र' में पूर्णतः प्रतिबिंबित हुआ - 2500 वर्षों के बाद भी वर्तमान काल में । (प्र. M) प्रभु महावीर ने इन आत्मज्ञ गणधरों को 'गण' की संज्ञा और अनुज्ञा दी, त्रिपदी प्रदान की "उपनेइ वा, धुवेइ वा, विगमेइ वा" की । (उत्पत्ति-स्थिति-लय की)। उससे द्वादशांगी बनी, प्रभु-उपदिष्ट तत्त्वधारा, ग्रंथधारा-14 पूर्वो की महाज्ञान धारा बही, नव नव रूपों में दिव्य, विश्व-प्रक्षालक विशाल सरिताएँ बह निकली... (प्र. F) ... फिर तो ऐसी अनेक सरिताओं-अनेक विषयों की अनेक देशनाओं-के द्वारा, अनेकों को तारनेवाला उनका धर्म-तीर्थ-धर्मचक्र-प्रवर्तन भारत की धरती पर अखंड चलता रहा... बहता रहा... (प्र. M) आचार में करुणा, अहिंसा, संयम, तप; दर्शन और चिन्तन में स्याद्वाद-अनेकांतवाद एवं धर्म में सर्वविरति-देशविरति या पंच महाव्रत-बारह अणुव्रत से युक्त, निश्चय-व्यवहार के संतुलनवाले, सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र के इस तत्कालीन और सर्वकालीन प्रवर्तनक्रम में चतुर्विध संघ बना। (प्र. F) उस समय के संघ में साधुओं में प्रधान थे गणधर गौतम स्वामी, साध्वियों में आर्या चन्दनबाला, श्रावकों में आनंदादि (१० उपासक) एवं श्राविकाओं में रेवती, सुलसा इत्यादि विदुषियाँ ! (प्र. M) उस युग की, देश और काल की समस्याएँ थीं - - (प्र. F) ब्राह्मण-शूद्र, जाति-पाँति (प्र. M) ऊंच-नीच और पीडित नारी (प्र. M) दम्भ, पाखंड, हिंसा, पशुबलि (प्र. M) अंधाग्रह और झूठ की जाली (प्र. F) थोथे क्रियाकांड और जड़भक्ति... (प्र. M) इन समस्याओं के प्राधान्यों को सुस्पष्ट करें तो 1. ब्राह्मण प्राधान्य (प्र. F) 2. पुरुष प्राधान्य : नारी अन्याय (प्र.M)3. कुल-संपत्ति-परिग्रह प्राधान्य-अमीर-गरीब वैषम्य (प्र.M) 4. अनुभूति शून्य शास्त्र', वेदादि ग्रंथ प्रामाण्य और प्राधान्य (प्र. M) 5. जनजनभाषा के स्थान पर संस्कृत भाषा का प्राधान्य । (प्र. F) 6. अंतर्ध्यान मार्ग के स्थान पर जड़ 'बाह्य-क्रिया' प्राधान्य । (प्र. M) 7. अहिंसा, करुणा के स्थान पर यज्ञ-पशुबलि एवं हिंसा-प्राधान्य । संक्षेप में (आत्मदृष्टि रहित) बाहरी आचारों एवं पुद्गल पदार्थों में आत्मबुद्धि । (प्र. F) भगवान महावीर के पास इन सभी समस्याओं का समाधान था, सभी रोगों का उपचार था, सभी के प्रश्नों का प्रत्युत्तर था।
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