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Second Proof Dt. 31-3-2016 57
(प्र. F Contd.) अनुभूति हुई :
आत्मध्यान के इस सागर की गहराई में उन्हें यह स्पष्ट पारदर्शी
....
=
...
( अनुभूति घोष M/F) "परे, शब्दों के कोलाहल से, ... विचारों की हलचल से परे ठहरे हैं एक शान्त, स्निग्ध नीरवता में अनेक प्रहर...... मनचाहा एकांत है जहाँ मैं हूँ। मैं स्वयं का, स्वात्मा । जिस का अस्तित्त्व... । और साथ है एक प्रशांत महासागर | स्वात्म शुद्ध स्वरूप का महासागर की अतल गहराई में है चन्द्रवत् निर्मल, सूर्यवत् व्याप्त, सागरवत् गंभीर 'चंदेसु निम्मलयरा, आइच्येसु अहियं पयासवरा, सागरवरगंभीरा' ऐसा स्वयं में ही, केवल मैं चैतन्यरूपी ज्ञाता-दृष्टा मैं = आत्मा... ! शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन आत्मा.... !!"
( धून गान (F) ...सभा समूहधून) (M)
• महावीर दर्शन
( धूनगान Repeat)
(सभा समूहगान )
महावीर कथा •
( स्व. कु. पारुल टोलिया 'पारुल प्रसून' लोगस्स महासूत्र ) "शुद्ध बुध्ध चैतन्यधन स्वयं ज्योति सुखधाम (2) " "केवल निजस्वभाव का अखंड बरते ज्ञान,
कहीए केवलज्ञान वह देह होते निर्वाण ।" (2)
(F/CH) सच्चिदानंदी शुद्धस्वरूपी अविनाशी मैं आत्मा हूँ। (2)
"आतमभावना भावतां जीवल लहे केवलज्ञान रे" (5)
(अनुभूति घोष M Echo) "मैं इन सभी संगों से सर्वथा भिन्न, केवल चैतन्य स्वरूपी ज्ञातादृष्टा आत्मा हूँ: विशुद्ध, स्वयंपूर्ण, असंग .... मेरी यह परिशुद्ध आत्मा ही परमात्मा का स्वरूप है । ... अप्पा सो परमप्पा ..." ( Instl Music)
" एगोsहं, सर्वथा भिन्नोऽहं... शुद्धात्मस्वरूपोडहं
i"
"सच्चिदानंदी शुद्धस्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मा हूँ ।" (2) "आतमभावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे..." (5) (Instrumental Music)
केवलज्ञान कल्याणक
(प्र.F) ... और अपनी निःसंग आत्मा का यह ध्यान सिद्ध होते ही प्रस्फुटित होती है उनके वदन पर प्रफुल्ल प्रसन्नता, शरीर पर कंचन सी कान्ति, सांसों में सुरभि, वाणी में माधुर्य (माधुरी) वातावरण में प्रशान्ति, आकाश में दिव्यसंगीत सुरावली... और आत्मा में उस सर्वदर्शी, परिपूर्ण, पंचमज्ञानकेवलज्ञान और केवलदर्शन की ज्योति (Divine Instl Music)
(57)
(M सूत्रघोष ) ॥ जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ ॥
(प्र. M) निग्रंथ महावीर अब रागद्वेषादि की सब ग्रंथियों को सर्वथा भेदकर बन चुके हैं, आत्मश, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग, अरिहंत तीर्थंकर भगवंत उनके दर्शन और देशनाउपदेश श्रवणार्थ -