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Second Proof D. 31-3-2016 - 43
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
महावीर दर्शन महाजीवन कथा ॥ महावीर स्वामी ! नयनपथगामी भवतु मे ॥
कल्याणपादपारामं श्रुतगंगा हिमाचलम् ।
विश्वाम्भोज रविं देवं वन्दे श्री ज्ञातनन्दनम् ॥ (सूत्र-ध्वनि) "जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ ।"
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥ (आचारांग : १/३/४) (= जो 'एक' को - आत्मा को - जान लेता है, वह सब को, सारे जगत् को जान लेता है।" (मंत्र-ध्वनि) ॐ नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं ।
नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्व साहूणं । एसो पंच नमुक्कारो । सव्व पावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसि । पढमं हवइ मंगलम् ॥ (प्रवक्ता-F) अनादिकाल से चला आ रहा है यह मंत्र-नमस्कार महामंत्र : व्यक्ति को नहीं, गुणों को पूजनेवाला विश्व-कल्याण का महामंत्र । अरिहंतपद सिद्धपद की पूजा-पूजना के द्वारा स्वयं को अरिहंतपद-सिद्धपद-परमात्मपद दिलानेवाला महामंत्र... पंच-परमगुरुओं में निहित आत्मतत्त्व-केन्द्रित महामंत्र । (प्रवक्ता-F). इस महामंत्र की आराधना, ध्यान-साधना एवं तद्नुसार आचरणा - सम्यक् दर्शनज्ञान-चारित्र की रत्नत्रयी उपासना - एक महान आत्मा ने की थी : एक नहीं, दो नहीं, सत्ताईस सत्ताईस जागृत जन्मान्तरों में...! सत्ताईस भव-नयसार और ऋषभदेव-पौत्र मरीची से लेकर वर्धमान महावीर तक। (प्र. M) और इतनी सुदीर्घ साधना के पश्चात्, आज से ठीक २६४२ वर्ष पहले, ईस्वी पूर्व (५९८) पांच सौ अठ्यानबे में - (प्र. F) जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र की कर्मभूमि ... बिहार की संपन्न वैशाली नगरी... उसीका एक उपनगर क्षत्रियकुंड-ग्राम और उसीमें स्थित एक राजप्रासाद - (प्र. M) तेईसवें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के धर्मावलंबी एवं लिच्छवी वंशी राजा सिद्धार्थ का यह राजमहल ... । यहाँ पर राजमाता त्रिशलादेवी की पवित्र कुक्षि में उस भव्यात्मा का देवलोक से अवतरण हुआ है- महामंगलकारी चौदह सर्वोत्तम सांकेतिक स्वप्नों के पूर्वदर्शन के साथ । (दिव्य वाद्यसंगीत : Celestial Instmtl. Music सूरमंडल, संतूर) (प्र. F) मति, श्रुत एवं अवधि इन तीनों ज्ञान से युक्त यह भव्य करुणाशील आत्मा गर्भावस्था में भी अपनी माता की सुख-चिन्ता एवं सुख-कामना का संकल्प करती है -
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