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Second Proor DL. 31-3-2016 - 17
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
इस में प्रातः से रात तक एवं जन्म से मृत्यु तक अप्रमाद में, सावधानीपूर्वक, निजी होशआत्मभानपूर्वक, शांति, समता और आनंद के साथ कैसे जिया जाय इस कला का सुस्पष्ट निरुपण हैं । अपने आप को भुलाये बिना कैसे सारी प्रवृत्ति की जाय उसकी कुंजी, युक्ति, मार्गदर्शन है। इस सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की अद्भुत सृष्टि में, अंतर्लोक में आपका स्वागत है। .
आयें, ऐसे सुंदर, सुष्ठ, जिनाज्ञामय सुख-शांति-दायक जीवनदर्शन महावीर महादर्शन को हम क्यों न अपनायें ? क्यों न उनके-से ऊर्ध्वगमन के द्वारा उस देहातीत आनंदलोक सिध्धलोक को पायें ?
प्रथम यहीं और अभी ही।
विदा की बेला वीर जिनेश्वर की भाव-वन्दना करते हुए, उनके वीरत्व की अमीप्सा-कामना करते हुए, उनके चरणों का अनन्यभाव से शरण-ग्रहण करते हुए, पराभक्तिवश उनके वर्तमान स्वरूपों के प्रति आत्म-बलि धरकर सर्वभाव से समर्पण करते हुए, उनके इस अक्षय दर्शन- 'महावीर दर्शन' - अपने अंतस्-स्थित आनंदघन प्रभुमहावीर को हम जगायें - अपने सुप्त आतमराम को अनादि चिर-नींद से जगायें :
"वीर जिनेश्वर चरणे लागुं, वीरपणुं ते मागुं रे; वीरपणुं ते आतम ठाणे, जाण्युं तुमची वाणे रे; ध्यान विन्नाणे शक्ति प्रमाणे, जिन ध्रुवपद पहिचाणे रे । वीर. आलंबन साधन जे त्यागे, पर परिणतिने भागे रे; अक्षय दर्शन ज्ञान वैरागे, 'आनंदघन' प्रभु जागे रे । वीर.
(- महायोगी आनंदघनजी : "पद्य रत्नावली") साफल्य मानें, हमारा परम भाग्य समझें कि हमें प्रभु वीर का महाशासन मिला, 'महावीर दर्शन' प्राप्त हुआ और उसे वर्तमान में परिदर्शित कराने वाले युगदृष्टा-युगप्रधान “परमपुरुष प्रभु सद्गुरु परमज्ञान सुखधाम" ऐसे परमकृपालुदेव श्रीमद् राजचन्द्र का सु-शरण मिला :
"सफळ थयुं भव म्हारं हो कृपाळुदेव । पामी शरण तमाएं हो कृपाळुदेव । कळिकाळे आ जंवु-भरते, देह धर्यो निज-पर-हित शरते, टाळ्युं मोह-अंधारं हो कृपाळुदेव ! सफळ - १. धर्म-ढोंग ने दूर हटावी, आत्म धर्मनी ज्योत जगावी, कर्यु चेतन-जड न्यारे हो कृपाळुदेव ।... सफळ - २.. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-रमणता, त्रिविध-कर्मनी टाळी ममता, 'सहजानंद' लद्यं प्यार हो कृपाळुदेव !... सफळ - ३.
(यो.यु.श्री सहजानंदघनजी : "सहजानंद सुधा")
॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥ १५८०, कुमारस्वामी ले आउट, बेंगलोर-560078 : -प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया
__21-5-2011 : 20-4-2016, महावीर जयंती। (17)