Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 24
________________ Second Proof DL. 31-3-2016 - 24 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • गीत (धार) (सूरमंडल ध्वनिः मेघगर्जन, हिंसक प्राणी गर्जन, भयावह वन वातावरण ध्वनि) (शिवरंजनी + अन्य) (M) "धारे वनों में पैदल घूमे, (F) पैरों में लिए लाली (F) मान मिले, अपमान मिले या देवे भले कोई गाली । (F) पंथ था उस का जंगल-झाड़ी कंकड़-कंटक वाला, कभी कभी या साथ में रहता मंखलीपुत्र गोशाला ॥" (वन में निर्भययात्रा) (स्वरपरिवर्तन) "आफत और उपसर्ग की सेना, पद पद उसे पुकारती थी, आँधी-तूफाँ और मेघ-गर्जन से कुदरत भी ललकारती थी। "घोर भयानक संकट के बीच आतम-साधना चलती थी। जहर हलाहल को पी जाकर, अंखियाँ अमृत झरती थीं ॥ "प्रेम की पावन धारा निरंतर, पापी के पाप प्रक्षालती थी । मैत्री-करुणा की भावना उसकी, डूबते बेड़े उबारती थी॥" (करुणा-वेदना-करुण मुरली स्वर : दृढ अडिगता के वज़ ध्वनि स्वर) "चंडकोशी जैसे भीषण नाग को बुझाने वीर विहार करे । जहर भरे कई दंश दिये पर वे तो उससे प्यार करे ॥" दृढभूमि के पेढाल उद्यान में संगमक देव के छह माह तक बीस प्रकार के घोर भयंकर मरणांत उपसर्ग - "होश भुला एक ग्वाला भले ही, कानों में कीले मार चले। आतम-भाव को जानने वाला, देह की ना परवाह करे ॥ (शेरगर्जना) देव और दानव, पशु और मानव, प्राणी उसे कई डॅस रहे। हँसते मुख से महावीर फिर भी, मंगल सब का चाह रहे ॥" ऐसे घोर उपसर्गों और दुःखों से भरी लम्बी साधनायात्रा बाह्यांतर निर्ग्रन्थ पुरुषार्थी महावीर ने आत्मभावना में लीन होकर छोटी कर दी और आनंद से भर दी .. (वायब्रो-ध्वनि) जिस आत्मा को पहचानने और समग्रताा में पाने के लिये वे चले थे, वह अब करीब करीब उनकी पहुँच के भीतर ही थी। (ध्वनिघोष) "सच्चिदानंदी शुध्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत ।" "सच्चिदानंदी शुध्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मा हूँ।" (M) यह वही भाव था, ज्ञान का सागर था, जिसकी अतल गहराइयों से वे कष्ट-सहन के, क्षमा के एवं निरपेक्ष स्नेहकरुणा के अनमोल मोती ले आये थे - (सागरध्वनि) (24)

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