________________
अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
संपादकीय
जैनदर्शन में अनेकान्तवाद
-डॉ. जयकुमार जैन, संपादक
भारतीय दर्शन केवल प्रेयोमार्ग की ही नहीं, श्रेयोमार्ग की संसिद्धि के भी साधन हैं। इनका उदय आध्यात्मिक जिज्ञासा को शान्त करने के लिए हुआ है, फलतः वे सन्देह एवं अविश्वास को दूर करके आध्यात्मिक सत्य की सिद्धि करते हैं। यद्यपि भारतीय दर्शनों को एकान्त रूप से ग्रहण कर लेने के कारण आपाततः उनमें मतभिन्नता दृष्टिगोचर होती है, तथापि अनेकान्त दृष्टि से विचार करें तो साध्य के विषय में उनमें मतैक्य दृष्टिगत होता है। श्री विद्य सोमदेवाचार्यकृत समाधिसार में कहा गया है
'गवामनेकवर्णानामेकरूपं यथा पयः। षण्णां वै दर्शनानाञ्च मोक्षमार्गस्तथा पुनः॥' पद्य ८३
अर्थात जिस प्रकार अनेक रंगों वाली गायों का दध एक ही रंग का होता है, उसी प्रकार छहों दर्शनों का मोक्षमार्ग एक ही प्रकार का होता है।
जैन परम्परा में स्तुतिविद्या के आद्य प्रणेता सुप्रसिद्ध तार्किक समन्तभद्राचार्य ने युक्त्यनुशासन में भगवान् महावीर के तीर्थ को इसी कारण सर्वोदय तीर्थ की संज्ञा दी है, क्योंकि मुख्यता एवं गौणता रूप कथन से वस्तु का अनेक धर्मात्मक स्वरूप सिद्ध हो जाता है। वे कहते
'सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम्। सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव॥' पद्य ६१
अर्थात् आपका यह तीर्थ सर्व अन्त (धर्म) वाला, गौणता एवं मुख्यता का कथन करने वाला है। यदि यह परस्पर निरपेक्ष हो तो सर्वधर्मों से शून्य हो जायेगा। अतः यह समस्त आपदाओं का नाश करने वाला और स्वयं अन्तरहित (शाश्वत) सर्वोदय सबका अभ्युदय करने वाला तीर्थ है।