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अनेकान्त
कोश में त्रिविष्टप को ही बैकुण्ठ कहा गया है। नीचे पडता था उस भूमि को पाताल मान गया था। विष्णु यही निवास करते थे। शिव हिमालय की कैलास पाताल भूमि बहुत विस्तृत थी। असुर जब हार गए तब चोटी पर रहते थे उसी के पास मान सरोवर था। देव सुतल, तलातल और महातल मे चले गये थे। सुतल जाति यहाँ पर क्रीडा करने के लिए पाया करती थी। बहुत सुन्दर भूमि होने के कारण सुतल कहा गया था। इन्द्र की पुरी अमरावती थी जो वर्तमान में चीन है। वर्तमान मे सुतल इंडोनेशिया मे आ गया है। और आज ब्रह्मा का निवास स्थान ब्रह्म लोक था जो वर्तमान मे भी वहाँ बलि नाम का द्वीप है जिसका सम्बन्ध असुरों के हर्मा हो गया है। उदयाचल पर्वत जहाँ सूर्य उदय होता अधिपति बलि से है। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि है इसके विषय में बाल्मीकि रामायण मे सुग्रीव कहता है- बलि महाबलिपुर में रहता था जो अभी दक्षिण में है। यह स्थान ब्रह्मा ने बनाया था। ब्रह्मलोक और भूलोक मे रसातल पाताल में गन्डवाना खड का उत्तर पश्चिम भाग जाने के बीच का द्वार यही था। वर्तमान में हिन्दुस्तान तुकिस्तान, काश्पियन एरिया, मध्य एशिया और एशिया की अपेक्षा से सूर्य सर्व प्रथम वर्मा के पर्वत से उदित होता का कुछ भाग पा जाता है। यहा एक रसा नाम की नदी है। इस प्रमाण से स्पष्ट है कि वर्मा ही पहले ब्रह्मलोक वहती थी जिसका नाम दर्तमान मेग्रोक्सस हो गया है। था। प्रा० चतुरसेन शास्त्री का कथन है-- देव श्री नार इस रसा नदी के आधार पर भी इसको रसातल कहा पर्वत पर रहते थे। श्री नार को आज सीनार कहते है। गया था वर्तमान में एशिया इसी रसातल का परिवर्तित यह पर्वत फारस में है। उर्वलोक की सीमा के बाद रूप हो ऐसा अनुमान होता है। इसी रसातल भाग में सप्तसिन्धु पाता है। यहां पर मानव जाति निवास करती दैत्य, गरुड़ और नाग तीनों जातियाँ निवास करती थी। थी। यह देश सिग्ध और सरस्वती के बीच का प्रदेश था रघु ने अश्वमेघ यज्ञ के समय अपने घोड़े को रसातल मे जिसमें सतलज, व्यास, रावी, चिनाब और भेलम आदि छिपाया था। युद्ध के समय विष्णु से हार कर मालि सात नदियाँ बहती थी। इसीलिए इसे सप्तसिन्धु कहा सुमालि राक्षस बहुत समय तक रसातल पाताल में ही गया था। इसमें सारा पजाब, कश्मीर का दक्षिणी पश्चिमी छिपकर रहे थे। इससे लगता है कि रसातल छुपने के भाग और अफगानिस्तान का वह भाग पा जाता है। जो लिए एक बहुत ही गम्भीर स्थान था। अतल और कुंभ (काबुल) नदी के पास बसा हुआ है। इसके दक्षिण वितल पताल अच्छं भी नही थे और खराब भी नही मे जहाँ आज राजस्थान है वहाँ समुद्र था। इसी प्रकार थे । यहाँ पर भी राक्षस और बानर जाति निवास करती पूर्व दिशा में भी जहाँ आज उत्तर प्रदेश है। वहाँ भी थी। तलातल, सुतल और महातल के बीच मे पडता था। समुद्र था । यह सप्त सिन्धु भाग ही अवेस्ता मे 'हप्तहिन्दु' महातल मे जाने के लिए तलातल को पार करना पड़ता और वर्तमान में हिन्दुस्तान हो गया है। सप्त सिन्धु के था। महातल पृथ्वी का वह भाग था जहाँ पर सोने और पास तेतीस का दरिया प्राता था जिसका पिछला भाग चाँदी की खाने थी। मटातल का
चाँदी की खाने थी। महातल का अपभ्रश होते-होते
मक्षिका और फिर मेकस्किो हो गया है 1 मेकस्किो वर्त१. Thes.s Ch. IV P.34 २. वही।
मान में अमरीका की बहुत सुन्दर नगरी है। 3. The S.S. Ch. XIV P. 139
सातवां पाताल बहुत ही दूर और गम्भीर स्थान है। ४. काचनस्य च शैलस्य-सूर्यस्य च महात्मनः ।
बाट पाने से पहले सुमालि के वशज वहीं रहे थे। इन्हीं प्राविष्टा तेजसा संध्या-पूरिक्ता प्रकाशते ॥६४।। ६. The s.s Ch. 10 P.91 पूर्वमेतत्कृतं द्वारं-पृथिव्या भुवनस्य च ।
1. The SS Ch. 10 P. 5€ सूर्योस्योदयन चैव-पूर्वाह्यषां द्विगुच्यते ॥६५॥ ८. रघुवश सर्ग १३ श्लोक ८
-वा० रा० किष्किन्धा का० सर्ग ४० ६. बा० रा० उत्तर काड सर्ग ३ श्लोक २८,२६,३० ५. वयं रक्षाम परिशिष्ट (प्रा० चतुरसेन शास्त्री) १०. The ss. Ch. 10 P. १३