Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 9
________________ १. प्राण सबको प्यारे एक बार महाराज श्रेणिक ने सभा में आये हुए लोगों से पूछा-'इस समय राजगृह नगर में ऐसी कौन-सी वस्तु हैं, जो सस्ती एवं स्वाद में स्वादिष्ट हों?" सब ने अपनी-अपनी राय प्रस्तुत की। क्षत्रियों की भी बारी आई। उन्होंने कहा, "इस समय सस्ती एवं स्वादिष्ट वस्तु केवल माँस है।" यह सुनकर वहाँ बैठे हुए अभयकुमार ने सोचा-"ये लोग ढीठ हैं। यदि इनको सबक नहीं सिखाया गया तो हिंसक आचार-विचारों का व्यापक प्रसार होगा। इसलिए ऐसा कोई उपाय करना चाहिए, जिससे फिर से ये लोग इस प्रकार बोलने की आदत भूल जाये।" यह सोचकर उसी रात अभयकुमार ने सभी क्षत्रियों के घर जाकर उनसे कहा- राजकुमार गम्भीर रूप से बीमार है। वैद्यों के कथन अनुसार राजकुमार को जीवित रखने का केवल एक ही उपाय है और वो है थोड़ा-सा मनुष्य के कलेजे (हृदय) का माँस। हे क्षत्रियो ! आप लोग राजा का अन्न (नमक) खाते हो। अतः राजकुमार को किसी भी तरह बचाना आप लोगों का परम कर्तव्य है। और हाँ, कलेजा लेने के बाद आपको, परिवार की आजीविका चलाने के लिए राज्य की ओर (तरफ) से एक हजार सोनैया दिया जायेगा। जिससे बाद में आपको परिवार की चिन्ता न रहे।" यह सुनकर एक क्षत्रिय ने हाथ जोड़कर नम्र स्वर में कहा-"मैं अपनी एक हजार सोनैया आपको अर्पण करता हूँ। कृपया आप यहाँ से जाइये और किसी अन्य क्षत्रिय से कलेजा (हृदय) माँगिये। मुझे जीवन-दान दीजिये।" अभयकुमार एक हजार सोनैया लेकर वहाँ से अन्य क्षत्रियों के यहाँ चल दिया। सभी क्षत्रियों ने अभयकुमार से ___एक ही बात कही। “हमारे से एक हजार सोनैया ले जाइये, किन्तु हमें जीवित छोड़ दीजिये। कलेजा (हृदय) किसी अन्य से ग्रहण करिये।" इस प्रकार अभयकुमार ने प्रत्येक क्षत्रिय के घर जाकर कुल एक लाख सोनैया एकत्रित किये, किन्तु किसी ने भी अपने कलेजे का माँस नहीं दिया। दूसरे दिन सुबह अभयकुमार ने राज्य-दरबार में एक लाख सोनैया का ढेर कर दिया। और क्षत्रियों से कहा“कल आप लोग इस सभा में सबसे सस्ती वस्तु माँस बता रहे थे। किन्तु एक लाख सोनैया के बदले थोड़ा-सा भी माँस _न मिल सका। अब बताओ, माँस मँहगा हैं या सस्ता?" अभयकुमार ने सभी क्षत्रियों को झिड़क दिया और आइन्दा माँसाहारी भोजन न करने प्रतिज्ञा दिलायी। यदि एक लाख सोनैया के बदले कोई अपना माँस न दे सकता हो तो, क्या क्रूरता से कत्ल किये गये अन्य प्राणियों के अंग ग्रहण करना या उनका व्यापार करना उचित है? ★★ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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