Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 24
________________ KEEGMIN OXOOGD 000OON CCCC NALOOfunnONTIYOASTUONA Contena शास्त्रानुसार मुनि का यथाशक्ति आचारमय जीवन ही ऐसा होता है जिसके द्वारा अपने-पराये का कल्याण होता रहे। परिहत के लिए मुनि को ढिंढोरा पीटने की आवश्यकता नहीं है। पर हित के बहाने शास्त्रनिरपेक्ष संसार में कुछ मुनि शामिल हो तो गये हैं किन्तु परहित तो क्या, वे स्वहित में भी चूक गये हैं। इसप्रकार प्रतिदिन पशुओं की पर्षदा को प्रतिबोध करते हुए बलराम मुनि को एक बार पात्रा आदि का प्रतिलेखन करते देख पूर्व भव का अनुरागी मुनि का पक्का भक्त एक मृग लकड़हारों को देखकर मुनि के पास आया। और मुनि के चरणों को मस्तक से स्पर्श करते हुए मुनि को भिक्षा के लिए पधारने के लिए विनती करने लगा। प्रतिदिन के अभ्यास से मृग का उद्देश्य समजकर मुनि भी उसके पीछे जाने लगे। मृग उस स्थान पर रुका जहाँ रथकार (लकडहारा) था। रथकार ने भी अपने भाग्य को सराहा, और मुनि से भिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रार्थना की। - "अतिथि देवो भवः"-इस सांस्कृतिक वाक्य को चरितार्थ करते हुए लकडहारा भी अत्यन्त अनुराग एवं प्रसन्नमन से भिक्षा देना आरम्भ करता है। मृग भी पशु-भव मिलने से स्वयं सुपात्र दान से वंचित होकर स्व-निंदा के साथ, इन दोनों पुण्यशालिओं की (भावुक होकर) अनुमोदना करने लगा। तभी जिस वृक्ष के नीचे मुनि गोचरी ग्रहण कर रहे थे, उस वृक्ष की आधी कटी हुई शाखा तेज आंधी से टूटकर उन तीनों पर गिरी। शाखा के गिरते ही तीनों की मृत्यु हो गई। और 'ब्रह्मलोक' नामक देवलोक में 'पद्धमोत्तर' विमान में उत्पन्न हुए। इस प्रकार बलराम मुनि १२00 (बारह सौ) वर्ष की आयु बिताकर स्वर्गगामी हुए। कृष्ण की कुल आयु १000 वर्ष थी बलराम की कुल आयु १२०० वर्ष थी। जबकि देव के रूप में उनकी वर्तमान आयु १० सागरोपम है। कृष्ण आगामी चोबीसी में अमम नामक तीर्थंकर होंगे, तब से आकर मनुष्य भव में उनके शासन में सिद्धगति को प्राप्त करेंगे। ★★ * १६ + For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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