Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ स्वयं जीवित रहकर साठ हजार पुत्रों की मृत्यु की सूचनाा उन्हें कैसे दे? अन्त में सबने निष्कर्ष निकाला कि सिर्फ हमारे पास मरने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। मंत्री-सामन्त आदि इसी चिन्ता में थे इसी बीच वहाँ एक ब्राह्मण आया और उनसे कहा-“कर्म का गणित अटल होता है। अब चिन्ता करने से कुछ नहीं होगा। मैं स्वयं राजा के समक्ष पूरा वृत्तान्त कह सुनाऊँगा। तुम लोग निश्चित रहो। जब मैं संकेत करूँ तब तुम सब राजा के समक्ष उपस्थित होना।" क ऐसा कहकर ब्राह्मण कहीं से एक अनाथ मनुष्य का शव (मृत शरीर) ले आया और उसको कन्धे पर उठाकर सगर चक्री के दरबार में आया। और फूट-फूटकर रोने लगा। सगर ने रोने का कारण पूछा। ब्राह्मण ने कहा-"महाराज ! मेरे पुत्र को जहरीले नाग ने डस लिया है। जिससे यह अचेत हो गया है। न तो बोलता है और न ही हिलता है। अतः हे नाथ ! कृपया मेरे इकलौते पुत्र को जीवन दान दीजिये।" सगर ने वैद्यों को बुलाया। राजा के पुत्रों की मृत्यु (से) सम्बन्धित सारी हकीकत से अवगत वैद्यों ने नाड़ी परीक्षण करके उस पुत्र को मृत घोषित किया। सगर ने वैद्यों से पूछा-“इस पुत्र को पुनः जीवित करने का कोई उपाय?" मान्त्रिक (वैद्य) ने कहा-“हाँ राजन् ! जिस घर में आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो, ऐसे घर की चुटकी भर राख यदि मिल जाय तो हम इस ब्राह्मण-पुत्र को पुनः जीवित कर सकते हैं। राजा ने सेवकों को आदेश दिया। सारा नगर घूमने के बाद भी सेवकों को कोई ऐसा घर नहीं मिला जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो। ★४७* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66