Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 57
________________ और उसी समय ब्राह्मण के संकेतानुसार मंत्रियों-सामन्तों आदि ने राज दरबार में प्रवेश किया। और राजा को पुत्रों की मृत्यु का पूरा वृतान्त कह सुनाया। सगर चक्री धरती पर यों गिरे, मानो वज्राघात हुआ हो । कुछ चैतन्य पाकर वे करुण आक्रन्द करने लगे। विधाता को धिक्कारने लगे। और कठोर हृदय को भी कँपा दे ऐसा विलाप करने लगे। इस प्रकार बहुत विलाप करने के बाद ब्राह्मण ने राजा से कहा- “राजन् ! थोड़ी ही देर पहले आप मुझे निषेध कर रहे थे, अब आप स्वयं क्यों विलाप कर रहे हो?" "महाराज ! प्रिय व्यक्ति का वियोग अच्छे-खासे पत्थर दिलों को भी पिघला देता है। जिनको लोह - जंजीरों से जकड़ना सम्भव नहीं, वे स्नेह-तंतुओं जकड़े जाते हैं। इसीलिए प्रिय व्यक्तियों का वियोग उनके लिए असहनीय होता है।" फिर भी "जिस प्रकार सागर तूफानों को झेलता है, उसी प्रकार धीर पुरुषों को भी आपत्तियों को झेलना सीखना चाहिए। इस प्रकार, मंत्रियों एवं ब्राह्मण के अनेक हितवचनों से कुछ शान्त होकर सगर चक्री ने पुत्रों का मरणोत्तर कार्य किया। “दुःख का औषध समय"-समय बीतते-बीतते राजा का दुःख शान्त हुआ। इधर दण्डरत्न द्वारा खींचकर लाई गई गंगा नदी की बाढ़ से, अष्टापद पर्वत के निकट स्थित गाँवों में बहुत नुकसान हुआ, अतः ग्राम्यजनों ने राजा से शिकायत की। सगर ने जनु पुत्र (अपने पौत्र) भगीरथ को ग्राम्यजनों का कष्ट दूर करने का काम सौंपा। भगीरथ ने वहाँ जाकर नागेन्द्र ज्वल-प्रभ को अट्ठम का तप करके प्रसन्न कर दिया। नागेन्द्र ने उसको (गंगा ले जाते समय) नागकुमार देवों द्वारा कोई उपद्रव नहीं होगा-ऐसा वचन देकर उसका भय दूर किया तत्पश्चात् भगीरथ नागदेवता की पूजा करके दण्डरत्न की सहायता से गंगा को खींचकर उत्तरी समुद्र की ओर ले गया और उसे समुद्र में मिला दिया। इस प्रकार सगर-पुत्र जनु द्वारा खींचकर लाने से गंगा का “जाहन्वी” नाम प्रसिद्ध हुआ और जहनु के पुत्र भगीरथ द्वारा गंगा को समुद्र में मिला देने से उसका नाम “भागीरथी" प्रसिद्ध हुआ । नागपूजा करके एवं उन गाँवों की समस्याओं का निवारण करने के पश्चात् भंगीरथ अयोध्या लौटा। सगर चक्री ने सम्मानपूर्वक प्रवेश करवाने के बाद ठाठ-बाठ से उसका राज्याभिषेक किया। तत्पश्चात् षड्खण्ड राज्य को त्यागकर सगर चक्री ने अजीतनाथ भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की। और अति दुष्कर तप को तपकर कैवल्य पाकर मुक्त हुए। सगर के साठ हजार पुत्रों को एक साथ अग्नि-शरण होकर मृत्यु को गले लगाना पड़ा, उसके पीछे क्या कारण था? और किस प्रकार? यह जानने के लिए पढ़िये, अगला प्रकरण Jain Education International 卐 ★ ४९ ★ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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