Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 56
________________ राज-सेवकों ने राजा को सारी हकीकत बताई। अब कोई उपाय शेष न था, अतः ब्राह्मण राजा को समझाने लगा। "भूदेव ! मृत्यु एक साधारण घटना है। उसके पंजों से कोई मुक्त नहीं हो सकता। चाहे करोड़ों की सम्पत्ति का स्वामी क्यों न हो? और धनवन्तरी वैद्य भी निकट क्यों न हो? सबके सामने यमराज अपने भक्ष्य को लेकर चलते बनते हैं?" "अन्य लोगों की बात छोड़ो, मेरे पूर्वज राजा भी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। मैं उनसे भी नहीं बचा सका था और न कोई मुझे मृत्यु से बचा सकता है। “ हाँसिंह के मुख से मृग का बच्चा मुक्त हो सकता है, किन्तु मृत्यु के मुख से जीव को बचाना असम्भव है।" - ब्राह्मण बोला-“राजन् ! मैं यह सब जानता हूँ। किन्तु मेरे इकलौते पुत्र की मृत्यु से मेरा वंश समाप्त हो जायेगा। अतः महाराज ! किसी भी प्रकार मेरे पुत्र को पुनः जीवित कर मुझे पुत्र-भिक्षा प्रदान कीजिये। मैं आपका उपकार आजीवन नहीं भूलूँगा।" राजा बोले-“कोई भी मन्त्र, तन्त्र, शास्त्र, रसायन या औषधि मृत मनुष्य को पुनःजीवित नहीं कर सकती। यह बात मेरे सामर्थ्य से बाहर है। इसलिए दुःख को छोड़ों।" “विपत्ति में आप जैसे विद्वान विप्र का खेद (दुःख) करना उचित नहीं है। मृत को पुनः जीवित करने के स्थान पर मृत्यु को ही सदा के लिए मौत देने वाले धर्म-कार्य को सज्जन लोगों को अपनाना चाहिए" यह कहकर राजा शान्त हो गया। अब लोह गरम है-यह सोचकर ब्राह्मण ने मौका देखकर धीरे-से राजा से कहा-"महाराज ! आपके (भी) साठ हजार पुत्र एक साथ मृत्यु के ग्रास बन गये हैं, सो उनके लिए भी आपको दुःख नहीं करना चाहिए।" harDELI पुणबयप ★४८★ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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