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और जो लोग शीलवन्त हैं, सम्यक्त्व-धर्म में स्थिर हैं-विरति और वैराग्य आदि गुणों को धारण करते हैं उत्तम पुरुष मानव भव के मूल धन से उपरोक्त साधना द्वारा भारी मुनाफा कमाकर मुक्ति प्राप्त करते हैं। वर्तमान में विशिष्ट संघयण - सामग्री के अभाव में भी उच्च स्तर की देवगति तो प्राप्त करते ही हैं।
यह सब जानने के बाद दिवालिया बनना ठीक है या देव? हम यह नहीं सोचते कि ७०-८० वर्ष की छोटी-सी जिन्दगी में दौड़-धूप, अन्याय और अनीति से प्राप्त पैसा किसके लिए कमाते हैं? क्या मौज-मस्ती करके दिवालिया बनने के लिए? बिल्कुल नहीं। यदि हम देव नहीं बन सकते तो मानव-भव प्राप्त करने की योग्यता तो बनानी ही चाहिए।
अन्त में
इस प्रकरण और सम्पूर्ण पुस्तक का सार यह है कि यदि अमूल्य मानव भव को दैवीय नहीं बना सकते तो मानवता के रूप में सुरिक्षत तो रख ही सकते हैं। सुरक्षित रखा हुआ मानवता का मूल धन हमें महामानव बनाने में सहायता करेगा। देव ही नहीं देवाधिदेव के स्तर तक पहुँचा देगा।
जीवन-आकाश प्रकाश-पुंजों से छलक जायेगा।
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कर्मठी
தின
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