Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 22
________________ बलराम के इन प्रश्नों के उत्तर में सिद्धार्थ बोला-"तुम्हारे कंधे पर रखा मृत शरीर यदि जीवित हो जाये तो ये सब भी सम्भव है।" तब बलराम सोचने लगा-क्या मेरे छोटे भाई कृष्ण की मृत्यु हो चुकी है ? क्या मेरे कंधे पर उसका मृत शरीर है ? तभी सिद्धार्थ देव ने अपने असली रूप में प्रकट होकर अपना परिचय दिया और प्रतिबोध के लिए अपना आगमन बताया। बलराम इससे गले मिला और पूछा कि अब क्या करना चाहिए ? सिद्धार्थ ने उसे सर्व त्याग के पथ पर प्रवजित होने का श्रेष्ठ मार्ग दिखाया। बलराम ने ये स्वीकार करके दो नदियों के संगम पर श्री कृष्ण का अन्तिम क्रिया किया। अर्थात् कृष्ण के शव को नदी में बहा दिया, तत्पश्चात् नेमिनाथ भगवान के भेजे हुए चारण मुनियों से बलराम ने दीक्षा ग्रहण की और गाँव-गाँव विहार करते हुए तुंगिका-शैल पर्वत के समीप आ पहुंचे। सिद्धार्थ देव भी उनकी सेवा के लिए हमेशा उनके निकट रहने लगे। (इस प्रकार छः माह तक बंधु प्रेम से प्रेरित होकर कृष्ण के मृत शरीर को अपने कंधों पर उठाये हुए बलराम वन में भटकते रहे। जीवित भाईयों के प्रति भी "मर जाये तो अच्छा" इस प्रकार की दुष्ट मनोवृत्ति वाले कलियुग के भाईयों को बलराम से अपूर्व बन्धु-प्रेम की प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए, जो कि मृत शरीर में भी अपने भाई को जीवित देखने की अभिलाषा रखता था।) Jain Education International ★१४* For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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