Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 26
________________ Parace कोप - पिशाच को प्रसन्न करते गये, त्यों-त्यों उसका देह (कद) छोटा होता गया। प्रहर के अन्त में पिशाच मच्छर-सा छोटा हो गया और कृष्ण ने उसको अपनी नाभि में डाल दिया। प्रातः काल कृष्ण ने अपने तीनों मित्रों को जगाया। पीड़ा से तड़पते हुए किसी के हाथ, किसी के पैर, तो किसी की पीठ रक्तरंजित एवं खरोंचों से युक्त देखकर कृष्ण ने उनसे पूछा- “तुम लोगों की यह हालत किसने की? " तब उन्होंने कहा"हम लोगों को किसी शक्तिशाली पिशाच ने घायल किया है।" कृष्ण - "अच्छा ? " तीनों मित्र - "क्या तुम्हारे पास वो पिशाच नहीं आया था ? तब मन्द-मन्द मुस्कराते हुए कृष्ण ने उस पिशाच को अपनी नाभि में से निकालकर दिखाया। "ताड़-सा ऊँचा पिशाच बिल्कुल मच्छर-सा कैसे हो गया?" सभी आश्चर्यचकित हो गये। तब कृष्ण ने सबको समझाते हुए कहा-“पिशाच के रूप में स्वयं क्रोध हमारे पास आया था। वह ज्यों-ज्यो युद्ध के रंग में आने लगा, त्यों-त्यों तुम लोगों का क्रोध बढ़ने लगा। और देखते ही देखते वह ताड़-सा लम्बा होकर तुम लोगों का अपमान करने लगा (क्योंकि “कोपः कोपेन वर्धते") और उसने तुम लोगों को परास्त कर दिया।” “जब मैंने उसके साथ-साथ युद्ध किया तो मैंने उसे उत्कट क्षमा-शस्त्र द्वारा पराजित किया। अर्थात् उसके समक्ष क्रोधित होने के स्थान पर मैं उसे प्रशंसा के मधुर शब्दों से नवाजने लगा। जिससे उसका देह कम होता गया। अन्त में वो इतना छोटा हो गया मैंने नाभि में छिपा दिया। क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए क्षमा शस्त्र ही कामयाब होता है। कोपः क्षान्तयैव जीयते । यह सुनकर तीनों मित्र कृष्ण की प्रशंसा करने लगे। लोग क्रोध अधिक करते हैं, उनको दारुक आदि की तरह बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं। सचमुच, क्रोध-रक्त-पिपासु पिशाच है। जो मनुष्य के शरीर में बहते हुए रक्त को चूस लेता है अर्थात् उसे खोखला कर देता है। और रक्त के अभाव में रोग-प्रतिकारक शक्ति क्षीण हो जाती है जिसके कारण विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते हैं। मानसिक शान्ति नहीं मिलती है। जिस प्रकार कृष्ण ने कोप-पिशाच को प्रशंसा के मधुर वचनों से परास्त किया, ठीक उसी प्रकार यदि क्रोधी व्यक्ति के गुणों को खोजकर उसकी प्रशंसा की जाये तो क्रोधी व्यक्ति का पर्वत-सा क्रोध अणु-समान छोटा होकर लुप्त हो जायेगा। Jain Education International For Priva&rsonal Use Only www.jainelibrary.org

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