________________
१०. बदलती राजनीति घूमते-घूमते चन्द्रगुप्त और चाणक्य हिमाचल प्रदेश पहुँचे। वहाँ के राजा ‘पर्वत' के साथ चाणक्य ने गहरी मित्रता कर ली, और अवसर देखकर चाणक्य ने उससे कहा-"तुम्हारा विशाल सैन्य एवँ मेरी बुद्धि-इन दोनों द्वारा हम राजा नन्द के साम्राज्य को जड़ से उखाड़कर उसके राज्य को आपस में बाँट लेंगे। राजा पर्वत ने भी उसकी बात स्वीकार कर ली और उन्होंने पाटलीपुत्र को चारों ओर से घेर लिया।
पर केवल सैन्य-बल से नन्द का एक भी नगर नहीं जीता जा सकता था। अतः चाणक्य ने संन्यासी के वेष में नगर में प्रवेश किया। नगर में मकानों का निरीक्षण करते-करते उसने एक स्थान पर देवताओं की सात मूर्तियाँ देखीं। चाणक्य ने सोचा-“नगर को अखण्ड रखने की शक्ति इन्हीं मूर्तियों में है। अतः इनको जड़ से उखाड़ देना चाहिए।" ठीक उसी
समय नगरजनों ने चाणक्य से पूछा-“शत्रु राजा ने चारों तरफ घेरा डाल रखा है। हम लोग बहुत दुःखी हैं। भगवन् ! | इस दुःख से मुक्ति कब मिलेगी? नगर के द्वार कब तक खुल सकेंगे?" मौका देखकर चाणक्य ने कहा-“जब तक इस नगर में सात देवताओं की मूर्तियाँ विद्यमान हैं, तब तक दुःख मुक्ति एवं शत्रु राजा से मुक्ति से असंभव है। ___यह सुनकर नगरजनों ने वहाँ स्थित सातों प्रतिमाओं को जड़ से उखाड़ दिया। और इधर चाणक्य के संकेतानुसार चन्द्रगुप्त और राजा पर्वत भी सेना का घेरा दूर करते गये। यह देखकर नगरजनों को चाणक्य पर अत्यधिक विश्वास हो गया। वे असावधान हो गये।
अब चाणक्य ने फिर से नगर चारों ओर तंग घेरा डाला और तीनों ही विशाल सेना लेकर नगर पर टूट पड़े। शीघ्र ही उन्होंने नगर पर कब्जा कर लिया। पुण्य, बुद्धि एवं बल से क्षीण नन्द राजा चाणक्य की शरण में आ गया तब चाणक्य ने नन्द से कहा-“एक ही रथ में तुम जो कुछ चाहो, लेकर नगर के बाहर से जा सकते हो।"
नन्द ने एक रथ में स्वयं, पत्नी, पुत्री और कुछ मूल्यवान धन-जेबरात लेकर नगर के बाहर प्रस्थान किया।
mmmmmmmmmmm
A
*३३★ For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org,