Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 51
________________ -1-2-8 यह देखकर पश्चाताप करते हुए दोनों कुमारों ने सोचा"धिकाकर है हम पर कि हमने हाथी आदि के लिए देश (मातृभूमि) का त्याग किया। भाई को शत्रु बनाया और मातामह चेटक को भारी संकट में डाल दिया। हाथी को भी अग्नि की खाई में कुदवाकर मोत के मुंह में धकेल दिया। अब, यह जीवन तो व्यर्थ है यदि जीवित रहे तो प्रभु वीर के शिष्य बनकर रहेंगे।" उसी समय शासनदेवी उन दोनों को प्रभु महावीर के पास ले गई। दोनों ने प्रभु से दीक्षा ग्रहण की, तत्पश्चात् ग्यारह अंगों की शिक्षा प्राप्त करके, गुणरत्न तपश्चर्या करके एवं अंत में समाधि से संलेखना करके, दोनों अनुत्तर विमानवासी देव हुए। ____ इधर किसी भी प्रकार वैशाली नगरी को प्राप्त करने में असमर्थ कोणिक ने प्रण किया कि यदि इस वैशाली नगरी को गधे युक्त हल से जोतया न सका तो मैं पर्वत से कूदकर आत्महत्या कर लूंगा। तभी आकाश्स्थ किसी देवी ने कोणिक से कैहा-“यदि कुलवालक मुनि को मागधिका नामक वेश्या द्वारा यहाँ लाया जाय तो उनके द्वारा चेटक की वैशाली नगरी पर कब्जा किया जा सकता है।" यह सुनकर प्रसन्न होकर कोणिक ने (मागाधिका) वेश्या को बुलाया और उसे आदेश दिया कि किसी भी प्रकार वनस्थ कुलवालक मुनि को वश में करके मेरे समक्ष प्रस्तुत किया जाये। मागाधिका भी कपटी श्राविका का स्वांग रचकर, जंगल में जिस स्थान पर कुलवालक मुनि तपश्चर्या कर रहे थे, वहाँ पहुँच गई और अपने भोजन को ग्रहण करने की उनसे विनती करने लगी, साथ में यह भी बहाना किया कि वह स्वयं यात्रा पर जा रही है। मुनि ने भी उसकी भावनाएँ समझकर उसका आमन्त्रण स्वीकार किया। वेश्या ने मादक पदार्थ युक्त मोदक मुनि को भिक्षा में दिया, जिसको मुनि पचा न सके और उन्हें उल्टी-दस्त होने लगे। कुटिल वेश्या सेवा के बहाने मुनि के निकट आने लगी और अंग मर्दन आदि करते-करते यावत् हाव-भाव और कटाक्षों से मुनि के ★४३★ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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