Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 44
________________ ११. समृद्ध प्राचीन भारत एक बार चाणक्य ने राज्य के प्रथम श्रेणी के धनवानों को भोजन के लिए निमंत्रित किया। भरपूर मदिरायुक्त भोजन से सारे धनवान शीघ्र ही अपनी आन-बान भूलकर पागलों की तरह प्रलाप करने लगे और नशे में इधर-उधर लड़खड़ाने लगे। चाणक्य भी उनमें शामिल हो गया। और उनके अनुसार चेष्टायें करते हुए बोला-“मेरे पास एक त्रिदंड है, दो सुन्दर धोती हैं और एक स्वर्ण-कमण्डल है। राजा भी मेरे वश में है। अतः मेरी प्रशंसा के गीत गाये जाने चाहिए।" - यह सुनकर मदिरा से अत्यन्त उन्मत्त होकर, किसी के सामने अपनी धन-सम्पत्ति का भेद न खोलने वाला एक धनवान बोला-“दस योजन तक कोई मदोन्मत्त हाथी जितने भी कदम चले और उसके प्रत्येक कदम पर एक लाख सौनेया रखे जायें, उतने सौनेया मेरी सम्पत्ति है। अतः मेरी प्रशंसा के गीत गाये जाने चाहिए।" इतने में-मदिरा से मदान्ध हुए एक अन्य धनवान ने अपनी सम्पत्ति का बयान करते हुए कहा-“यदि आढक (एक प्रकार का माप) तिल जिस किसी खेत में बोये जायें और प्रत्येक फले-फूले पौधे में जितने तिल हों, उस प्रत्येक तिल के बराबर एक लाख सौनेया जितनी अपार सम्पत्ति मेरे पास है। इसलिए मेरी प्रशंसा के गीत गाये जाये सो आश्चर्य क्या है?" उन दोनों की बात सुनकर मदिरा से उन्मत्त एक तीसरे धनवान ने अपनी सम्पत्ति का बखान इस प्रकार किया"सुनो, पर्वत पर होने वाली वर्षा की भारी प्रवाहयुक्त बाढ़ को मेरे यहाँ एक ही दिन में निकले मक्खन की दीवार से मैं रोक सकता हूँ। सोचों, मेरे यहाँ कितना गोधन होगा कि बाढ़ को एक ही दिन में निकले मक्खन से रोका जा संकता है।" इस प्रकार बोलते हुए जैसे ही वो शान्त हुआ कि चौथा धनवान बोला-“मेरे पास प्रचुर अश्व धन है। एक ही दिन में मेरे यहाँ इतने अश्व बच्चे जन्म लेते हैं कि केवल आज के ताजे जन्मे अश्व-बच्चों के केश (बालों) के समूह से पूरा पाटलीपुत्र नगर घेरा जा सकता है। इसलिए मेरी प्रशंसा के गीत गाये जायें यही उचित है।" (OTOM ★३६* For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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