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“यह धन तो मेरी समृद्धि के समक्ष तुच्छ है ।" इस प्रकार आक्षेपपूर्वक पाँचवां धनवान बोला- “मेरे पास प्रसूतिका एवं गर्दभिका दो विद्या रत्न ऐसे हैं कि चावल के पौधे को चाहे कितनी बार काटा जाये तो भी तुरन्त वैसा ही फला-फूला खिल जाता है। ऐसा प्रभाव मेरे पास के दो रत्नों में है। अतः मेरा अधिकार है कि मेरी प्रशंसा के गीत गाय जायें। "
तभी निद्रा से चौंककर जागते हुए एक अन्य धनवान उच्च स्वर में बोला- “मेरी सम्पत्ति के समक्ष तुम लोगों की सम्पत्ति बिल्कुल तुच्छ है। प्रशंसा गीत का वास्तविक अधिकारी तो मैं हूँ। सुनो, मुझे धन प्राप्ति के कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता । न कहीं यात्रा करनी पड़ती है। मुझ पर एक भी पैसे का कर्ज नहीं है। मेरी पत्नी मेरे वश में है। और मैं हमेशा पूरे शरीर पर चन्दन का लेप लगाकर निकलता हूँ। मैं कितना सुखी-सम्पन्न हूँ ?"
इस प्रकार एक के बाद एक धनवान मदिरा के नशे में अपनी व्यक्तिगत पूँजी का प्रदर्शन करते गये। और जब उनका नशा उतरा और वे स्वस्थ हुए तो चाणक्य ने सीमा में रहकर उनसे इस प्रकार यथोचित धन ग्रहण किया।
पहले धनवान से एक योजन तक पड़ने वाले हाथी के कदमों के हिसाब से प्रति कदम एक लाख सौनेया ग्रहण की। (उस धनवान के पास दस योजन तक चलने वाले हाथी के एक-एक कदम के अनुपात में प्रति कदम एक लाख सौनेया थीं। )
एक तिल के पौधे में जितने तिल पैदा हों, उस प्रति तिल के हिसाब से एक-एक लाख सौनेया दूसरे धनवान से ग्रहण की। तीसरे धनवान से प्रतिमाह एक दिन में जितना मक्खन निकलता हो, उतना मक्खन ग्रहण करना तय किया गया। चौथे धनवान से एक दिन में पैदा होने वाले अश्व बच्चे राज्य को देना तय किया गया।
पाँचवें से राज्य के अन्न भण्डारों को भरपूर करने के बराबर चावल ग्रहण करना तय किया गया। इस प्रकार प्रथम श्रेणी के धनवानों से धन ग्रहण करने के बाद चाणक्य ने राज्य की अन्य सुखी-सम्पन्न आम जनता से धन ग्रहण करने की नई तरकीब अपनायी ।
सौनेया से भरा एक थाल बाजार के चौराहें के बीच रखा गया। फिर चाणक्य ने एलान किया कि चौपड़ में जो मुझसे जीतेगा उसे स्वर्ण मोहरों से भरा यह थाल भेंट दिया जायेगा और यदि मैं जीत जाँऊ तो हारने वाले को एक सौनेया मुझे देनी होगी। (कहा जाता है कि चौपड़ खेलने के पासे यांत्रिक या देविय थे, जिससे चाणक्य ही जीतता था ।)
इस प्रकार चाणक्य ने आजकल की शोषण पद्धति के बिना ही राज्य के अर्थ तन्त्र को मजबूत बना दिया। लेकिन उसके स्थान पर यदि आज के सेल्सटैक्स या इन्कमटैक्स अफसरों ने उन धनवानों के यहाँ छापा मारा होता उन बेचारों को भटकते फकीर बना दिया होता।
भारत कितना समृद्ध और बुद्धिमान देश था ! जहाँ का प्रत्येक धनवान इस धरती पर घी-दूध की नदियाँ बहाने में समर्थ था। जहाँ का एक ही चाणक्य अपनी तीव्र बुद्धि द्वारा देश की समृद्धि एवं निर्भयता के लिए काफी था ।
भूतकाल का वो चाणक्य यदि आज जीवित होता तो कदाचित् विदेशी गोरों के रहस्यमय पंजों को भारत में प्रवेश न करने देता।
ऐसा एक भी चाणक्य आज की राजनीति में दृष्टिगोचर नहीं है जो यन्त्रीकरण के स्थान पर गो-धन, अश्व-धन, गज-धन एवं शक्ति-धन से हमारी संस्कृति को पुनः जीवित कर सके।
जो प्राणियों के रक्त से तर इस धरती को शुद्ध दही-दूध से तर कर दे, बूचड़खानों को नष्ट कर दे एवं देश के धन को मछली मारने, मुर्गी मारने, माँस उत्पादन जैसे महापापी धन्धों के लिए खर्च न करे और जिस शासक या अधिकारी ने जनता के धन का ऐसा दुरुपयोग किया हो, उसे कड़ी सजा दे।
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