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इस प्रकार बार-बार प्रार्थना करने से सूरी देव ने सेठ से पूछा-''इस समय पुरोहित के घर क्या चल रहा है, ये मुझे बताइये।"
सेठ ने कहा-“पुरोहित ने अपना नया निवास स्थान बनवाया है जहाँ कल राजा को सपरिवार भोजन के लिए आमन्त्रित किया गया है।"
यह सुनकर सेठ के अत्यन्त आग्रह और दाक्षिण्य से प्रभावित होकर सूरीदेव बोले-“आप एक काम करिये। राजा जब भोजन के लिए पुरोहित के महल के निकट पहुंचे तब उनका हाथ पकड़कर अन्दर प्रवेश करने से रोक देना,
और ठीक उसी समय मन्त्र शक्ति से मैं महल को धराशायी कर दूंगा। ____ और अगले (दूसरे) दिन ऐसा ही हुआ। जैसे ही सेठ ने राजा का हाथ पकड़कर मकान के भीतर प्रवेश करने से रोका, तभी महल गिरकर मलबे में परिवर्तित हो गया।
तत्पश्चात् सेठ ने राजा से कहा कि आपकी हत्या करने के लिए पुरोहित ने यह षड्यन्त्र रचा था। अन्यथा नया बना हुआ महल कैसे अचानक टूटकर गिर गया?
यह सुनकर क्रोधित राजा ने पुरोहित को बँधवाकर सेठ को सौंपते हुए कहा-"आप इसे जो दण्ड देना चाहें दे सकते हैं।" सेठ भी यही चाहते थे।
सेठ ने पुरोहित को साधु के अपमान के विषय में स्मरण कराया और जिस पैर को साधु के ऊपर लटकाया था, उसे काटने के लिए एक विशेष यन्त्र-स्टैण्ड बनवाया एवं उसका पैर उस पर रखवा दिया।
अत्यन्त भयभीत पुरोहित ने सेठ से अपने ऊपर दया करने के लिए प्रार्थना की और कहा कि अब कभी भी मैं किसी साधु का अपमान नहीं करूँगा। केवल एक बार मेरे अपराध को क्षमा कर दीजिये।
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