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विचार करने लगे कि मथुरा तो उत्तर ओर दक्षिण दोनों तरफ है, तो कौन-सी मथुरा जीतने का आदेश राजा ने दिया है।
सभी दुविधा में पड़ गये। अब क्या करें ! चूँकि राजा का तानाशाही स्वभाव सब जानते थे, अतः कोई दूत राजा के पास भेजकर समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता था।
परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि न आगे बढ़ा जा सकता था, न पीछे हटा सकता था। तभी शिवभूति वहाँ आ पहुँचा और सैनिकों को विश्राम अवस्था में देखकर सेनापति से पूछा-"क्या कुछ (अशुभ) 'अपशुकन हुआ है' वास्तविकता क्या है ?" सेनापति ने दो मथुरा से उत्पन्न समस्या उसे बतायी। वीर शिवभूति ने कहा-"चिन्ता क्यों करते हैं ? हम दोनों मथुरा जीत लेंगे?"
सेनापति ने कहा-''दोनों मथुरा जीतने के लिए हमारी सेना बँट जायेगी और एक भी मथुरा जीतना कठिन हो जायेगा। एक मथुरा जीतने में इतना अधिक समय लग जायेगा कि दूसरी मथुरा जीतना अत्यन्त कठिन होगा।
तीव्र बुद्धि एवं बल से गर्जना करते हुए शिवभूति बोला-“यदि ऐसा ही है तो जो मथुरा अजेय हो, उसे जीतने का काम मुझे सौंपा जाये।"
तब सेनापति ने दूर स्थित मथुरा को जीतने का काम शिवभूति को सौंपा। शिवभूति ने यह आदेश स्वीकार कर दक्षिण की ओर प्रयाण किया और वो मथुरा राज्य के प्रत्येक प्रान्त एवं गाँव जीतता हुआ मथुरा के किले के निक ट आ पहुँचा। अपने बल एवं बुद्धि से अजेय मथुरा दुर्ग को जीतकर उसने मथुरा राज्य पर कब्जा कर लिया और अपने स्वामी राजा के पास जाकर सारी बात बतायी। राजा ने प्रसन्न होकर उसे वरदान माँगने के लिए कहा।
कुछ सोचकर शिवभूति बोला-“मुझे स्वतन्त्रता दीजिए। अर्थात् मैं जहाँ चाहूँ घूम-फिर सकू, और कोई भी वस्तु ग्रहण करूँ तो मुझे रोका न जाये।" सत्यप्रतिज्ञ राजा ने उसको ऐसी ही स्वतन्त्रता प्रदान कर दी। अब शिवभूति भी इच्छानुसार सर्वत्र नगर में घूमने लगा।
कभी-कभी वो दिन-रात जुआरियों के साथ जुआ खेलता, तो कभी शराब पीकर शराबियों के साथ अशिष्ट हरकते करता, कभी वेश्यागमन करता, तो कभी नगर के जल-स्थानों में जल-क्रीड़ा करने लगता। कभी-कभी नगर के उद्यानों में इच्छानुसार गुलदस्ते बनाकर खेलने लगता है। इस प्रकार इच्छानुसार बर्ताव करते हुए शिवभूति देर रात घर जाने लगा, तो कभी घर जाता ही नहीं था। ___शिवभूति की पत्नी सती थी। अतः जब तक शिवभूति घर नहीं पहुँचता, तब तक न तो वह खाना खाती थी
और न ही सोती थी। प्रतिदिन क्षुधा एवं अनिद्रा से पीड़ित होकर एक दिन अवसर देखकर उसने अपनी सास से कहा-“माताजी ! आपका पुत्र हमेशा देर रात घर लौटता है, जिसके कारण मैं परेशान हो जाती हूँ. तब सास ने कहा-बेटी ! आज तुम सो जाना, जब तक शिवभूति नहीं आता, तब तक मैं जागूगीं।" ऐसा कहकर माताजी ने दरवाजा बन्द कर दिया और शिवभूति की प्रतीक्षा करने लगी। शिवभूति घूमता-फिरता आधी रात को घर आया और बोला-दरवाजा खोलो। उसकी माताजी ने अन्दर से उत्तर दिया-“यहाँ कोई दरवाजा नही खुलेगा। (अभी जहाँ भी दरवाजा खुला हो, वहाँ तुम जाओ।")
इसप्रकार माता द्वारा अपमानित स्वाभिमानी शिवभूति सोचने लगा कि स्वयं माता द्वारा तिरष्कृत होकर अब मैं कहाँ जाऊ? इस प्रकार विचार करते हुए, घूमते-फिरते भाग्य से साधुओं के खुले उपाश्रय में वो जा पहुंचा। उस समय वहाँ कृष्णाचार्य विराजमान थे, शिवभूति ने उनको प्रणाम कर दीक्षा के लिए प्रार्थना की।
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