Book Title: Anant Akash me
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 38
________________ वृक्ष को मैं जड़ से उखाड़ दूंगा। इस प्रकार प्रतिज्ञा करके राजा नन्द द्वारा उपेक्षित चाणक्य नगर से बाहर चला गया। "यह बालक किसी राजा की छाया होकर रहेगा।" पिता के इन वचनों को याद करते हुए चाणक्य अपने भावी राजा की खोज में भटकता हुआ (नन्द राजा के) मयूरपोषक नामक गाँव में सन्यासी के वेष में भिक्षा के लिए भटकने लगा। ___ उस गाँव में किसी ब्राह्मण की गर्भवती पुत्री ने चन्द्र-पान करने का प्रण (दोहद) था। जो कि किसी भी प्रकार पूरा न होने पर उसका शरीर क्षीण होता जा रहा था. उसी समय चाणक्य सन्यासी के वेष में वहाँ जा पहुँचा। उसके पित एवं भाई ने चाणक्य से पूछा-"यह (दोहद) प्रण किस प्रकार पूरा होगा? चाणक्य ने कहा-“आपकी पुत्री की प्रसूति के बाद जो भी बच्चा जन्म ले, वो मुझे देने का वचन दो तो मैं तुरन्त उसका (दोहद) प्रण पूरा करवा दूं।" "प्रण पूरा नहीं होगा तो शायद पुत्री की मृत्यु हो जाय।"-अतः सन्यासी की बात स्वीकार करनी चाहिए, इस प्रकार परस्पर सोच-विचारकर सन्यासी (चाणक्य) की बात स्वीकार कर उन्होंने उससे प्रण पूरा करवाने के लिए विनंती की। चाणक्य ने कपड़े का एक मंडप तैयार करवाया और उसकी छत पर एक सुराख करवा दिया। गुप्त रूप से उस सुराख को ढकने के लिए एक व्यक्ति को ऊपर बिठा दिया। सुराख के ठीक नीचे (मंडल में) पानी से भरा हुआ एक थाल रखा गया। कार्तिक पुर्णिमा की रात चन्द्र का प्रतिबिम्ब थाल में दिखने लगा। गर्भवती पुत्री को वो पानी पीने के लिए कहा गया। ज्यों-ज्यों वे प्रतिबिम्बित थाल का पानी पीती जाती है, त्यों-त्यों ऊपर स्थित व्यक्ति सुराख को ढकता जाता है। पुत्री ने सोचा कि-मैं चन्द्र पान कर रही हूँ। इसप्रकार उसका प्रण पूरा हुआ। कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। पिता आदि ने उसका नाम 'चन्द्रगुप्त' रखा। “पूत के लक्षण पालने में" इस उक्ति अनुसार औदार्य, धैर्य, गांभीर्य एवं सौन्दर्य आदि गुणों से अलंकृत वह बालक (चन्द्रगुप्त) बच्चों के साथ खेल-खेल में राजा बनता था। जैसे कि राजा बनने की भविष्यवाणी का पूर्व संकेत कर रहा हो। स्वयं राजा बनकर किसी बालक को पुरस्कार में गाँव देता-तो किसी बालक को घोड़ा बनाकर उस पर सवारी करता। किसी बालक को सजा भी देता था। 0000000000 Jain Education International For PX 30ernal Use Only www.jainelibrary.org

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