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नहीं है। हे वनदेवियों ! मुझ पर दया करके मेरे भाई को समझाओं ! हे प्रिय बन्धु ! तुम्हारी ऐसी चेष्टा से तो मुझे सम्पूर्ण संसार शून्य ही नजर आता है। अतः कृपया करके उठकर खड़े हो जाओ। अतः लो ये जल ग्रहण करो। अभी सोने का समय नहीं है।" । इस प्रकार मृत कृष्ण से विनती करते हुए बलराम ने सारी रात बिता दी। भोर होने पर विक्षिप्तों की तरह विलाप करते हुए बलराम ने कृष्ण को जगाने का प्रयास किया-"उठो उठो बंधु ! अब धूप चढने लगी है। अभी तो हमें बहुत दूर जाना है।"
कष्ण के प्रति अत्यन्त मोहासक्त बलराम, कृष्ण के मृत शरीर को अपने कन्धे पर उठाकर बड़बड़ते हुए वन में भटकने लगे। इसप्रकार भटकते-भटकते ग्रीष्म ऋतु बीत गई और वर्षा ऋतु आरम्भ हो गई।
पहले बलराम के प्रति अत्यन्त प्रेम से वशीभूत होकर सारथी बने सिद्धार्थ नामक सगे भाई ने बलराम से दीक्षा-याचना की थी, तब बलराम ने कहा था-"कालान्तर में यदि तुम देव बनो तो मुझे प्रतिबोध करने अवश्य
आना।" मरकर देव बने सिद्धार्थ ने इस समय अवधिज्ञान का उपयोग किया और मोहवश कृष्ण के मृत शरीर को कंधे पर उठाये हुए बलराम की दुर्दशा देखकर, उसे प्रतिबोध करने वह पृथ्वी पर आया। वह विभिन्न रूप धारण करके नई-नई तरकीबें आजमाने लगा। जैसे
★ पत्थर पर कमल उगाना ★ दग्ध (जले हुये) वृक्ष को बार-बार पानी से सींचना ★ मृत गाय को बलपूर्वक घास खिलाना आदि टोटके उसने विभिन्न रूपों में बलदेव को दिखाये।
क्या पत्थर पर कमल उग सकता है ? क्या जले हुए वृक्ष को पानी से सीचंकर नवपल्लवित किया जा सकता है ? गायों के मृत शरीर कहीं घास खाते हैं ?
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