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3. कर्मों की गति न्यारी द्वारका-विनाश के बाद बलराम एवं कृष्ण असहाय हो, अकेले ही हस्तिकल्प नगर के निकट आ पहुँचे। कृष्ण ने बलराम से कहा-“भाई ! मुझे खूब भूख लगी हैं। अब एक भी कदम चला नहीं जाता है।"
बलराम ने कहा-“बन्धु, इस नगर से भोजन लेकर मैं अभी आ रहा हूँ। तब तक तुम यहीं ठहरो।"
बलराम ने नगर में जाकर अपनी अँगूठी एक हलवाई को दी और बदले में स्वादिष्ट भोजन खरीदा। हाथ में पहने हुए कड़े के बदले मदिरा खरीदी। दोनों ने नगर के बाहर एक उद्यान में भोजन किया। जब पुण्यों का क्षय होता है तो त्रिखंड के अधिपति को भी भूख से तड़पना पड़ता है प्यास से मरना पड़ता है किसी हलवाई के सामने हाथ फैलाना पड़ता है।
तत्पश्चात् कृष्ण-बलराम दक्षिण दिशा की तरफ चल दिये। भयंकर ग्रीष्म-ऋतु, मध्याह्न का समय, लवण से भरपूर मदिरा पान, एवं गरिष्ठ भोजन से कृष्ण जब अत्यन्त तृषातुर हुए तो उन्होंने बलराम को बताया। ___प्यास से व्याकुल कृष्ण वृक्ष की छाया तक पहुँचने में असमर्थ थे। बलराम ने कृष्ण से कहा-"कृष्ण ! मैं तुम्हारे लिए जल लेकर आता हूँ, तब तक तुम इस वृक्ष के नीचे विश्राम करो।" यह कहकर बलराम पानी की खोज में चल दिये। कौशाम्ब वन में एक वृक्ष की छाया में केवल पीताम्बर पहने हुए श्री कृष्ण पैर के उपर पैर चढ़ाकर सो गये। अत्यन्त परिश्रम से थके हुए प्यास से व्याकुल कृष्ण पलभर में ही गहरी नीदं सो गये।
इधर पानी की खोज में निकले बलराम आकाश की ओर देखते हुए वन-देवता को सम्बोधित करने लगे“हे वनदेवता ! मेरे प्राणप्रिय बन्धु एवं विश्व-वल्लभ कृष्ण की आप रक्षा करना। ये बालक आपकी शरण में हैं।
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